________________ XX अन्तिम छठे परिच्छेद साधु परमेष्ठी में साधु की शब्दगत महत्ता, उसकी व्याख्या, साधु के लिए प्रयुक्त विशिष्ट शब्द, साधु की पात्रता, दीक्षाविधि, साधु के गुण, साधु का आचार-व्यवहार, उपकरण एवं आहार-विधि आदि का वर्णन करते हुए उनकी क्लिष्ट तपसाधना का विवेचन किया गया है। इससे अतिरिक्त साधु के लिए दी गयी इक्कतीस उपमाओं की चर्चा करते हुए उनकी आराधना एवं उससे प्राप्त होने वाले परिणाम पर -i वस्तृत अध्ययन किया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय एवं साधु इन पंच परमेष्ठियों के स्वरूप की साङ्गोपाङ्ग महत्ता का प्रकाश किया गया है। मेरे हदय की प्रसत्रता शब्दों से परे है कारण कि जैनाचार्य ज्योतिषमार्तण्ड पूज्य सोहनलाल जी म. के सुशिष्य भारत केसरी युवाचार्य श्री काशीराम जी म. के परम आज्ञाकारी शिष्य, आध्यत्म रति, जैन संस्कृति के महान् गौरव, कुशलमत्रवेत्ता कर्मठसाधक, जनकल्याण भावना से ओतप्रोत, विलक्षणतार्किक, सन्तमहिमान्वित, सरस्वती के अमृतपुत्र और निरभिमानी पण्डितरत्न पंजाब प्रवर्तक स्व०, श्री मुनि शुक्लचन्द जी म. के जन्म शती महोत्सव के पुनीतपर्व पर आज मेरा यह चिरप्रतीक्षित प्रबन्ध प्रकाश में आ रहा है। इसके लिए मैं उनके प्रति अत्यन्त कृतज्ञ हूं | आपकी अदृष्ट अनुकम्पा ऐसी ही मेरे पर सदैव बनी रहेगी इन्हीं शब्दों के साथ मैं मुनिश्रेष्ठ के चरणकमलों में कोटिशः प्रणाम करता हुआ अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं। इसी पावन अवसर पर मैं तेरापन्थ के वर्तमान गणाधिपति आचार्यप्रवर तुलसी जी म. तथा महाप्रज्ञ आचार्य श्री मुनि नथमल जी म. को कैसे भूल सकता हूं जिनका प्रतिफल प्रबन्ध लेखन में सम्यक् निर्देशन, स्नेहपूर्ण मंगल आशीष तथा प्रेरणा निरन्तर मिलती रही। आप दोनों आचार्यों के कृपाभाव के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापन करता श्रवण संघ के मृदुभाषी युवाविद्वान् डॉ. मुनि सुव्रतशास्त्री जी म. का भी मैं चिरऋणी हूं जिन्होंने प्रस्तुत ग्रंथ की भूमिका लिखकर मुझे अनुगृहीत किया है। सुहृदय वत्सल मुनिवर की प्रकृत अनुकम्पा सदैव स्मरण रहेगी। अतएव आपका धन्यवाद करता __परमश्रद्धेय शासन प्रभावक कविरत्न व्याख्यान वाचस्पति श्रीसुरेन्द्र मुनि जी म. के सुयोग्य शिष्य सन्त रत्न युवामनीषी विद्वान ओजस्वी वक्ता श्रीसुभाषमुनि जी म. का तथा साध्वी-रत्ना परम विदुषी डॉ. अर्चना जी म. का किन शब्दों में मैं आभार व्यक्त करूं कारण कि एक तो आप साध्वी-सन्तों का उदारमना अन्तरंग शुभार्शीवाद मुझे उपलब्ध है, दूसरे, आप सन्त रत्नों की दूरदर्शी प्रबल प्रेरणा एवं सहयोग का प्रतिफल है कि प्रस्तुत