Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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कृतज्ञता प्रकाशन
प्रस्तुत ग्रंथ के हिंदी अनुवाद की प्रेरणा मुझे डा. हीरालाल जैन ने प्रायः ग्यारह वर्ष पूर्व नागपुर में दी थी । इस सम्बन्ध में समय समय पर दिये गये उनके सुझावों के लिए मैं उनका आभारी हूँ। संस्कृत के विद्यार्थी होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हुआ, इसलिये प्रस्तुत अनुवाद मुख्यतः प्रोफेसर एम. रंगाचार्य के सटीक आङ्गल भाषानुवाद पर आधारित है। इस अनुवाद में शासन द्वारा प्रकाशित पारिभाषिक शब्दावलि का उपयोग किया गया है । संस्कृत के प्रूफ देखने का श्रेय डा. ए. एन. उपाध्ये को है।
इस कार्य में प्रयुक्त कतिपय ग्रंथों की पूर्ति पूज्य श्री १०५ क्षु० मनोहरलाल जी वर्णी "सहजानन्द" ने की, जिसके लिये मैं उनका चिर कृतज्ञ हूँ ।
___ महाकौशल महाविद्यालय (राबर्टसन कालिज ), जबलपुर के भूतपूर्व प्राचार्य स्वर्गीय श्री उमादास मुखर्जी का मैं आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे अपनी सहज दया का पात्र बनाकर प्रस्तुत अनुवाद के कार्य को भली भाँति सम्पन्न करने हेतु संरक्षण प्रदान किया । इसी महाविद्यालय के गणित विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर श्री सी. एस. राघवन द्वारा प्रदत्त सुविधाओं के लिये भी मैं उनका आभारी हूँ।
मैं श्री वी. एस. पंडित, एडवोकेट, जबलपुर, तथा श्री प्रबोधचंद्र जैन, एडवोकेट, छिंदवाड़ा का आभारी हूँ जिनकी अप्रत्यक्ष सहायता के बिना यह कार्य न हो सका होता। अप्रकट रूप से सहायक विद्यार्थी वर्ग भी धन्यवाद का पात्र है।
अंत में, मैं उन ग्रंथकारों के प्रति कृतज्ञ हूँ, जिनके ग्रंथों की सहायता लेकर यह कार्य निष्पन्न हुआ है।
३. जनवरी, १९६३ गवर्नमेंट साइंस कालिज,
जबलपुर।
लक्ष्मीचंद्र जैन