Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
View full book text
________________
-९. १२३]
छायाव्यवहारः
२७.
अत्रोदेशकः पूर्वाह्ने पौरुषी छाया त्रिगुणा वद किं गतम् । अपराहेऽवशेषं च दिनस्यांशं वद प्रिय ॥९॥
दिनांशे जाते सति घटिकानयनसूत्रम्अंशहतं दिनमानं छेदविभक्तं दिनांशके जाते । पूर्वाह्ने गतनाड्यस्त्वपराहे शेषनाड्यस्तु ॥ १० ॥
अत्रोद्देशकः विषुवच्छायाविरहितदेशेऽष्टांशो दिनस्य गतः । शेषश्चाष्टांशः का घटिकाः स्युः खाग्मिनाड्योऽह्नः ॥ ११३ ।।
मल्लयुद्धकालानयनसूत्रम्कालानयनाद्दिनगतशेषसमासोनितः कालः । स्तम्भच्छाया स्तम्भप्रमाणभक्तैव पौरुषी छाया ॥ १२३ ॥
___ उदाहरणार्थ प्रश्न किसी मनुष्य की छाया उसकी ऊँचाई से ३ गुनी है । हे प्रिय मित्र, .बतलाओ कि पूर्वाह्न में बीते हुए दिन का भाग एवं अपराह में शेष रहने वाला दिन का भाग क्या है ? ॥ ९ ॥
दिन का भाग (जो बीत चुका है, या बीतने वाला है) प्राप्त हो चुकने पर घटिकाओं की संवादी संख्या को निकालने के लिये नियम
दिन मान के ज्ञात माप को. (पहिले ही प्राप्त ) दिन के बीते हुए अथवा बीतने वाले भाग का निरूपण करने वाले भिन्न के अंश द्वारा गुणित करने और हर द्वारा भाजित करने से, पूर्वाह्न के संबंध में बीती हुई घटिकाएँ और अपराह के संबंध में बीतने वाली घटिकाएँ उत्पन्न होती हैं ॥१०॥
उदाहरणार्थ प्रश्न ऐसे प्रदेश में जहाँ विषुवच्छाया नहीं होती, दिन ? भाग बीत गया है, अथवा अपराब के संबंध में शेष रहने वाला दिन का भाग है। इस भाग की संवादी घटिकाएँ क्या हैं ? दिन में ३० घटिकाएँ मान ली गई हैं ॥११॥
मल्लयुद्ध काल निकालने के लिए नियम
जब दिन के बीते हुए भाग तथा बीतने वाले भाग के योग द्वारा दिन की अवधि हासित कर, उसे घटिकाओं में परिवर्तित किया जाता है, तब इष्ट समय उत्पन्न होता है। अथवा बीतनेवाला समय ( नियमानुसार ) यह है
(छ) अथवा २ (कोस्पा + १) '
उ
जहाँ कोण आ उस समय पर सूर्य का ऊँचाई निरूपक कोण है। यह सूत्र केवल आ = ४५०, छोड़कर आ के शेष मानों के लिये सन्निकट दिन का समय देता है । जब यह कोण ९०° के निकटतर पहुँचता है, तब सन्निकट दिन का समय और भी गलत होता जाता है । यह सूत्र इस तथ्य पर आधारित है कि किसी समकोण त्रिभुज में छोटे मानों के लिए कोण सन्निकटतः सम्मुख भुजाओं के समानुपाती होते हैं।
सन्निकट
x