Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
View full book text
________________
२७.
गणितसारसंग्रहः
अजधटरविसंक्रमणद्यदलजभैक्यार्धमेव विषुवद्भा॥४३॥ लङ्कायां यवकोट्यां सिद्धपुरीरोमकापुर्योः । विषुवद्भा नास्त्येव त्रिंशद्धटिकं दिनं भवेत्तस्मात् ॥ ५३॥ देशेष्वितरेषु दिनं त्रिंशन्नाड्याधिकोनं स्यात् । मेषधटायनदिनयोस्त्रिंशद्धटिकं दिनं हि सर्वत्र ॥ ६ ॥ दिनमानं दिनदलभां ज्योतिश्शास्त्रोक्तमार्गेण । ज्ञात्वा छायागणितं विद्यादिह वक्ष्यमाणसूत्रौधैः ।। ७३ ॥
विषुवच्छाया यत्रयत्र देशे नास्ति तत्रतत्र देशे इष्टशङ्कोरिष्टकालच्छायां ज्ञात्वा तत्कालानयनसूत्रम्छाया सैका द्विगुणा तया हृतं दिनमितं च पूर्वाहे । अपराह्ने तच्छेषं विज्ञेयं सारसंग्रहे गणिते ।। ८३ ॥
विषुवद्भा ( अर्थात् जब दिन और रात दोनों बराबर होते हैं, उस समय पड़ने वाली छाया) वास्तव में उन दिनों के मध्याह्न ( दोपहर ) समय प्राप्त छाया के मापों के योग की आधी होती है, जब कि सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तथा जब वह तुला राशि में भी प्रवेश करता है ॥४३॥
लंका, यवकोटि, सिद्धपुरी और रोमकपुरी में ऐसी विषुवदा (equinoctial shadow) बिलकुल होती ही नहीं है और इसलिए दिन ३० घटी का होता है ॥५१॥
अन्य प्रदेशों में दिन मान ३० घटी से अधिक या कम रहता है। जब सूर्य मेष राशि और तुला ( घटायन ) राशि में प्रवेश करता है, तब सभी जगह दिन मान ३० घटी का होता है ॥ ६ ॥
ज्योतिष शास्त्र में वर्णित विधि के अनुसार दिन का माप तथा दिन की मध्याह्न छाया का माप समझ लेने के पश्चात्, छाया संबंधी गणित निम्नलिखित नियमों द्वारा सीखना चाहिए ॥७३॥
ऐसे स्थान के संबंध में दिन का वह समय निकालने के लिए नियम, जहाँ विषुवच्छाया नहीं होती हो, तथा किसी दिये गये समय पर ( दोपहर के पहिले अथवा पश्चात् ) किसी दिये गये शंकु की छाया का माप ज्ञात हो
किसी वस्तु ( शंकु) की ऊँचाई के पदों में व्यक्त छाया के माप में एक जोड़ा जाता है, और इस प्रकार परिणामी योग दुगुना किया जाता है। परिणामी राशि द्वारा पूर्ण दिनमान भाजित किया जाता है। यह समझना चाहिये कि सारसंग्रह नामक गणित शास्त्र के अनुसार, यह प्राप्त फल पूर्वाह्न और अपराह के शेष भागों (अथवा दोपहर के पहिले दिन के बीते हुए भाग और दोपहर के पश्चात् दिन के शेष रहने वाले भाग) को उत्पन्न करता है ॥८॥ गये त्रिज्या की माप में कुछ अधिक लंबाई वाला होना चाहिये । यदि 'क पू और 'क प' पार्श्व आकृति में क्रमशः पूर्व और पश्चिम दिशा प्ररूपित करते हों, तो आकृति उ ख द ग, क्रमशः पू और प को केन्द्र मान कर और पू ग, तथा पख त्रिज्याएँ लेकर चाप खींचने से प्राप्त होती हैं, पर
गकाख जब कि पू ग और प ख आपस में बराबर हों । भुजा उद जो पूर्वोक्त आकृति के कोग का अर्धन करती है, क्रमशः उत्तर और दक्षिण दिशा का प्ररूपण करती है।
(८) यदि वस्तु की ऊँचाई उ है, और उसकी छाया की लंबाई छ है, तो दिन का बीता हुआ