Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh

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Page 385
________________ ४६ गणितसारसंग्रह शब्द अध्याय पृष्ठ स्पष्टीकरण अभ्युक्ति परिकर्म 3 کد पक्ष द पाटली गणितीय क्रियाएँ। इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार (श्लोक १६० -१६१) के अनुसार कुन्दकुन्दपुर के पद्मनन्दि (अर्थात् कुन्दकुन्द) ने अपने गुरुओं से सिद्धान्त का अध्ययन किया और षटखंडागम के तीन खंडों पर परिकर्म नाम की टीका लिखी। यह अनुपलब्ध है। (त्रिलोक प्रज्ञप्ति, भाग २, १९५१ की प्रस्तावना से उद्धृत)। स्वर्ण, रजत एवं अन्य धातुओं का परिशिष्ट ४ की भार माप। सूचियाँ ४, ५, ६ देखिये। | काल माप। परिशिष्ट ४ की सूची २ देखिये। मधुर गंध वाले पुष्पों Bignonia वाला वृक्ष । Suaveolens, लम्बाई का माप। परिशिष्ट ४ की सूची १ देखिये। १०८ पार्श्वनाथ, २३वें तीर्थकर । बाजू में। ७३ वृक्ष का नाम । Rottleria Tinctoria ६ | रजत का भार माप, सम्भवतः | परिशिष्ट ४ की टंक भी। सूची ५ देखिये। एक प्रकार का रत्न । २१३/ पिशाच सम्बन्धी; इसलिये अत्यन्त कठिन अथवा जटिल। विविध प्रश्नाबलि। पार्श्व या बाजू की भुजा । गुणन । | (साहित्यिक ) वह जो पूर्ण रूप से भर अथवा तुष्ट कर देती है; यहाँ स्वर्ण मिश्रित कुप्य धातुएँ; तलछट . (dross )। पाद Km. << पार्श्व पुन्नाग पुराण पुष्यराग पैशाचिक GN प्रकीर्णक प्रतिबाहु प्रत्युत्पन्न प्रपूरणिका m al_G.

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