Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh

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Page 384
________________ गणितसारसंग्रह शब्द सूत्र अध्याय पृष्ठ स्पष्टीकरण अभ्युक्ति धरण ३९ । १ ५ | स्वर्ण या रजत का भार माप । परिशिष्ट ४ की सूचियाँ ४ और ५ देखिये। नन्द्यावर्त | ६ | १७७ विशेष प्रकार के बने हुए राजमहल का नाम । नरपाल राजा; सम्भवतः किसी राजा का नाम । निरुद्ध लघुत्तम समापवर्त्य । निष्क स्वर्ण टंक ( सिक्का)। नीलोत्पल नेमिक्षेत्र / नील कमल (जल में उगने वाली नीली नलिनी)। ४ दो संकेन्द्र परिधियों का मध्यवर्ती | २०० क्षेत्र ( Annulus)। ८ संकेतना का बारहवाँ स्थान । न्यर्बुद पट्टिका पण | २६७ क्रकच कर्म ( Saw-work ) का | परिशिष्ट ४ की माप । सूची १० देखिये। स्वर्ण का भार माप: स्वर्ण टंक | पाराशष्ट ४ को (सिक्का)। सूची ४ देखिये। ८ डिंडम या मेरी पणव १ (अन्वायाम छेद) पद्म ६६ | १ ८ | संकेतना का पंद्रहवाँ स्थान | पद्मराग | एक प्रकार का रत्न । परमाणु | १ | ४ | पुद्गल का अविभागी कण | परिशिष्ट ४ की सूची १ देखिये।

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