Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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गणितसारसंग्रह
उत्तर धन-२॥ उत्तर मिश्रधन-२४॥ उत्पन्न-१४०।३।६७। उत्सेध-१९८१७२४१। उन्नत वृत्त-१८१। उभय निषेध-१८९।। ऋतु-३५।१।५। एक-६३।१।८। औण्ड्र-औण्ड्रफल–२५१। ... अंश-४२।१।६। अंशमूल-३।४।६८ अंशवर्ग-३।४।६८। कदम्ब-६।४६९। कम्बुकावृत्त-१८१॥ कर्ण-१९४॥ कर्म-६०।१७। कर्मान्तिका-२५३। कर्ष ३९-४०।१५। कला-४२।१।६। कला सवर्ण-२।३।३६। कोर्षापण-११।५।८४। किष्कु-६३।८।२६७/ कुङ्कम-६३।३।१०। कुट्टीकार-१०८। कुडब-कुडहा–३६।१५। कुटज-२३।४।७२। कुम्भ-३८।११। कुरबक-२६।४७२। केतकी-१०२।३।५९। कोटि-६४।१८। कोटिका-४५।१६। क्रोश-३१।१।४। कृति-१३।३।३८। कृष्णागरु-६।५।८४। खर्व-६६।१८। खारी-३७।१।। गच्छ-६१।।२०। गण्डक-३९।११५। गतनाड्य-२७१। गुञ्जा–३९।११५। गुण-१८१॥ गुणकार-२।३।३६। गुणधन-२८ गुण सङ्कलित-९४।२।२९। घन-४३।२।१६। घनमूल-५३।२।१८। घटी-३३।१।५।
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