Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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२७६]
गणितसारसंग्रहः
[९, २८
शङ्कप्रमाणशङ्कुच्छायामिश्रविभक्तसूत्रम्शङ्कप्रमाणशङ्कुच्छायामिश्रं तु सैकपौरुष्या। भक्तं शङ्कुमितिः स्याच्छङ्कुच्छाया तदूनमिश्रं हि ।। २८ ।।
अत्रोद्देशकः शङ्कप्रमाणशङ्कुच्छायामिश्रं तु पञ्चाशत् । शङ्कत्सेधः कः स्याच्चतुगुणा पौरुषी छाया ॥ २९ ॥
'शङ्कुच्छायापुरुषच्छायामिश्रविभक्तसूत्रम्शङ्कनरच्छाययुतिर्विभाजिता शङ्कुसैकमानेन । लब्धं पुरुषच्छाया शङ्कुच्छाया तदूनमिश्र स्यात् ॥ ३०॥
अत्रोद्देशकः शङ्कोरुत्सेधो दश नृच्छायाशङ्कुभामिश्रम् ।। पश्चोत्तरपञ्चाशन्नृच्छाया भवति कियती च ।। ३१ ।।
__ शंकु की ऊँचाई तथा शंकु की छाया की लंबाई के मापों के दत्त मिश्रित योग में से उन्हें अलग-अलग निकालने के लिए नियम- शंक के माप और उसकी छाया के माप के मिश्रित योग को जब द्वारा बढ़ाये गये ( मानवी ऊँचाई के पदों में व्यक्त) मानवी छाया के माप द्वारा भाजित करते हैं, तब शंकु की ऊँचाई का माप प्राप्त होता है । दिये गये योग को शंकु के इस माप द्वारा हासित करने पर शंकु की छाया का माप प्राप्त होता है ॥ २८ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न शंकु के ऊँचाई माप और उसकी छाया के लंबाई माप का योग ५० है। शंकु की ऊँचाई क्या होगी, जबकि मानवी छाया उस समय मानवी ऊँचाई की चौमुनी है ? ॥ २९ ॥
शंकु की छाया की लम्बाई के माप और (मानवी ऊँचाई के पदों में व्यक्त ) मानवी छाया के मापके मिश्रित योग में से उन्हें अलग-अलग प्राप्त करने के लिए नियम
शंकु की छाया तथा मनुष्य की छाया के मापों के मिश्रित योग को एक द्वारा बढ़ाई गई शंकु की ज्ञात ऊँचाई द्वारा भाजित करते हैं। इस प्रकार प्राप्त भजनफल (मानवी ऊँचाई के पदों में व्यक्त) मानवी छाया का माप होता है। उपर्युक्त मिश्रित योग जब मानवी छाया के इस माप द्वारा हासित किया जाता है, तब शंकु की छाया की लंबाई का माप उत्पन्न होता है ॥ ३०॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी शंकु की ऊँचाई १० है। ( मानवी ऊँचाई के पदों में व्यक्त ) मानवी छाया और शंकु की छाया के मापों का योग ५५ है। मानवी छाया तथा शंकु की छाया की लंबाई क्या-क्या हैं ? ॥३॥
(२८और ३०) यहाँ दिये गये नियम गाथा १२१ के उत्तरार्द्ध में कथित नियम पर आधारित हैं।