Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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छायाव्यवहारः
[२८१
अत्रोद्देशकः आत्मच्छाया चतुःपादा वृक्षच्छाया शतं पदाम् । वृक्षोच्छ्रायः को भवेत्स्वपादमानेन तं वद ।। ४९ ॥
वृक्षच्छायायाः संख्यानयनोदाहरणम्आत्मच्छाया चतुःपादा पश्चसप्ततिभिर्युतम् । शतं वृक्षोन्नतिवृक्षच्छाया स्यात्कियती तदा ॥५०॥ पुरतो योजनान्यष्टौ गत्वा शैलो दशोदयः । स्थितः पुरे च गत्वान्यो योजनाशीतितस्ततः॥५१॥ तदग्रस्थाः प्रदृश्यन्ते दीपा रात्रौ पुरे स्थितैः । पुरमध्यस्थशैलस्यच्छाया पूर्वागमूलयुक् । अस्य शैलस्य वेधः को गणकाशु प्रकथ्यताम् ॥ ५२३ ।। इति सारसंग्रहे गणितशास्ने महावीराचार्यस्य कृतौ छायाव्यवहारो नाम अष्टमः समाप्तः॥
॥ समाप्तोऽयं सारसंग्रहः॥
उदाहरणार्थ एक प्रश्न पाद माप में निज की छाया की लम्बाई ४ है। ( उसी पाद माप में ) वृक्ष की छाया की लम्बाई १०० है। बतलाओ कि ( उसी पाद माप में ) वृक्ष की ऊँचाई क्या है ? ॥ ४९ ॥
किसी वृक्ष की छाया के संख्यात्मक माप को निकालने के संबंध में उदाहरण
किसी समय निज की छाया की लम्बाई का माप निज के पाद से चौगुना है। किसी वृक्ष की ऊँचाई ( ऐसे पाद-माप में) १७५ है। उस वृक्ष की छाया का माप क्या है? ॥५०॥ किसी नगर के पूर्व की ओर ८ योजन (दूरी) चल चुकने के पश्चात्, १० योजन ऊँचा शैल (पर्वत) मिलता है। नगर में भी १० योजन ऊँचाई का पर्वत है । पूर्वी पर्वत से पश्चिम की ओर ८० योजन चल चुकने के पश्चात् , एक और दूसरा पर्वत मिलता है । इस अंतिम पर्वत के शिखर पर रखे हुए दीप नगर निवासियों को दिखाई देते हैं। नगर के मध्य में स्थित पर्वत की छाया पूर्वी पर्वत के मूल को स्पर्श करती है। हे गणक, इस (पश्चिमी ) पर्वत की ऊँचाई क्या है ? शीघ्र बतलाओ ॥ ५१-५२३ । ।
इस प्रकार, महावीराचार्य की कृति सार संग्रहनामक गणित शास्त्र में छाया नामक अष्टम व्यवहार समाप्त हुआ।
इस प्रकार यह सारसंग्रह समाप्त हुआ।
(५१-५२३ ) यह उदाहरण उपर्युक्त ४५ वें श्लोक में दिये गये नियम को निदर्शित करने के लिये है।