Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-९. २०]
छायाव्यवहार
[२७३
इष्टनाडिकानां छायानयनसूत्रम्द्विगुणितदिनभागहृता शङ्कुमितिः शङ्खमानोना । द्यदलच्छायायुक्ता छाया तत्स्वेष्टकालिका भवति ।। १८॥
__ अत्रोद्देशकः द्वादशाङ्गुलशङ्कोद्यु दलच्छायाङ्गुलद्वयो। दशानां घटिकानां मा का छिशन्नाडिकं दिनम् ।। १९ ।।
पादच्छायालक्षणे पुरुषस्य पादप्रमाणस्य परिभाषासूत्रम्पुरुषोन्नतिसप्तांशस्तत्पुरुषाऽस्तु दैयं स्यात् । यद्येवं चेत्पुरुषः स भाग्यवान घ्रिभा स्पष्टा ॥२०॥
आरूढच्छायायाः संख्यानयनसूत्रम्
घटियों में दिए गये दिन के समय को संवादी छाया का माप निकालने के नियम
शंकु ( style ) का माप दिन के दिये गये भाग के माप को दुगुनी राशि द्वारा भाजित किया जाता है। परिणामी भजनफल में से शंकु का माप घटाया जाता है, और उसमें विषुवच्छाया ( दोपहर के समय की ऐसे स्थान की छाया, जहाँ दिन रात तुल्य होते हैं) का माप जोड़ दिया जाता है। यह दिन के इष्ट समय पर छाया का माप उत्पन्न करता है ॥ १८॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
यदि किसी १२ अंगुल वाले शंकु के संबंध में, धुदलच्छाया (विषुवच्छाया)२ अंगुल हो. तो जब १० घटी दिन बीत चुका हो अथवा बीतने वाला हो उस समय शंकु की छाया का माप क्या है? दिन का मान ३० घटियाँ होता है ॥ १९॥
छाया के पाद प्रमाण माप के द्वारा लिए गये मापों संबंधी मनुष्य के पाद माप की परिभाषा
किसी मनुष्य की ऊँचाई के १/७ भाग के तुल्य उसके पाद की लंबाई होती है। यदि ऐसा हो. तो वह मनुष्य भाग्यशाली होगा। इस प्रकार पाद प्रमाण से नापी गई छाया का माप स्पष्ट है॥२०॥
ऊर्ध्वाधर दीवाल पर आरूढ़ छाया का संख्यात्मक माप निकालने के लिये नियम
है, जहाँ 'क' शंकु की विषुवच्छाया की लंबाई है। यह सूत्र ऊपर की गाथा ८१ में दिये गये सूत्र की पाद टिप्पणी पर आधारित है।
(१८) बीजीय रूप से,
२घ
छ = -- उ+व, जहाँ घ, दिन के समय का माप घटी में दिया गया है। यह सूत्र श्लोक १५३ वें की पाद टिप्पणो में दिये गये सूत्र से प्राप्त होता है।
ग० सा० सं०-३५