Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-७. ७५३]
क्षेत्रगणितम्यवहारः विपरीतक्रियाया सूत्रम्गुणचापकृतिविशेषात्तकहतात्पदमिषुः समुद्दिष्टः । शरवर्गात् षड्गुणितादूनं' धनुषः कृतेः पदं जीवा ।। ७४३ ।।
अत्रोद्देशकः धनुराकारक्षेत्रे ज्या द्वादश षट् शरः काष्ठम् । न ज्ञायते सखे त्वं का जीवा कः शरस्तस्य ।। ७५३ ।।
१. B और M दोनों में उपर्युक्त पाठ है; पर इष्ट अर्थ “षड्गुणितादूनाया धनुष्कृतेः पदं जीवा" से निकलता है।
विपरीत क्रिया के सम्बन्ध में नियम
डोरी के वर्ग और धनुष के वक्रकाष्ठ के वर्ग के अन्तर की भाग राशि का वर्गमूल बाण का माप होता है। धनुषकाष्ठ के वर्ग में से बाण के वर्ग की ६ गुनो राशि को घटाने से प्राप्त शेष का वर्गमूल डोरी का माप होता है ॥ ७४३ ॥
___ उदाहरणार्थ प्रश्न धनुषाकार आकृति की डोरी १२ है, और बाण ६ है। झुकी हुई काष्ठ का माप अज्ञात है। हे मित्र, उसे निकालो। इसी आकृति के संबंध में डोरी और उसके बाण के माप को अलग-अलग किस तरह निकालोगे, जब कि आवश्यक राशियाँ ज्ञात हों ? ॥ ७५३ ॥
/च२-कर (७३३-७४३) बीजीय रूप से, चाप = V६ ल. + क२; लम्ब =V
और चापकर्ण = V२ - ६ लरे चापकर्ण और बाण के पदों में चाप का मान समीकरण के रूप में देने के लिये अर्द्धवृत्त बनानेवाले चाप को आधार मानना पड़ता है। प्राप्त सूत्र को किसी भी अवधा (वृत्त खंड) के चाप का मान निकालने के उपयोग में लाते हैं। अर्द्धवृत्तीय चाप%AXV१०V १.%DV६ १२+४त्र होता है, जहाँ । त्रिज्या अथवा अर्द्धव्यास है। इसी सिद्धान्त पर आधारित यह सूत्र किसी भी चाप के लिये है । यहाँ ल = बाण (चाप तथा चापकर्ण के बीच की महत्तम दूरी), और क = जीवा (चापकर्ण) है । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति ( २/२४, ६/१०) में धनुषपृष्ठ का सूत्र महावीर के सूत्र समान है,
धनुषपृष्ठ =V६ ( बाण२ ) + { ( व्यास - बाण) ४ बाण } DV६ (बाण )२ + ( जीवा )२ त्रिलोक. प्रज्ञप्ति ( ४/१८१) में सूत्र इस रूप में है,
धनुष%DV२ {(व्यास + बाण)२-(व्यास )२}
बाण निकालने के लिये जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (६/११) तथा त्रिलोक प्रज्ञप्ति (४/१८२ ) में अवतरित सूत्र दृष्टव्य है।