Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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गणितसारसंग्रहः
खातगणितफलानयनसूत्रम्क्षेत्रफलं वेधगुणं समखाते व्यावहारिक गणितम् । मुखतलयुतिदलमथ सत्संख्याप्तं स्यात्समीकरणम् ॥ ४॥
अत्रोद्देशकः समचतुरश्रस्याष्टौ बाहुः प्रतिबाहुकश्च वेधश्च । क्षेत्रस्य खातगणितं समखाते किं भवेदत्र ॥५॥ त्रिभुजस्य क्षेत्रस्य द्वात्रिंशद्वाहुकस्य वेधे तु । षट्त्रिंशद्दृष्टास्ते षडङ्गुलान्यस्य किं गणितम् ॥६॥ साष्टशतव्यासस्य क्षेत्रस्य हि पञ्चषष्टिसहितशतम् । वेधो वृत्तस्य त्वं समखाते किं फलं कथय ।। ७ ।। आयतचतुरश्रस्य व्यासः पञ्चायविंशतिर्बाहुः । षष्टिर्वेधोऽष्टशतं कथयाशु समस्य खातस्य ।। ८॥
अस्मिन् खातगणिते कर्मान्तिकसंज्ञफलं च औण्डसंज्ञफलं च ज्ञात्वा ताभ्यां कर्मान्तिकौण्डूसंज्ञफलाभ्याम् सूक्ष्मखातफलानयनसूत्रम्
गढ़ों की घनाकार समाई ( अंतर्वस्तु) को निकालने के लिये नियम
गहराई द्वारा गुणित क्षेत्रफल, नियमित ( regular ) खात (गड़े)की घनाकार समाई का व्यावहारिक मान उत्पन्न करता है। सभी विभिन्न मुख (ऊपरी) विस्तारों के तथा उनके संवादी नितल ( bottom ) विस्तारों के योगों को आधा किया जाता है। तब ( उन्हीं अर्द्धित राशियों के) योग को कथित अर्दित राशियों की संख्या द्वारा भाजित किया जाता है । औसत समाई को प्राप्त करने के लिये यह क्रिया है ॥४॥
उदाहरणार्थ प्रश्न नियमित खात के छेद के प्रतिरूपक, समान भुजाओंवाले चतुर्भुज क्षेत्र, के संबंध में भुजाएँ तथा गहराई प्रत्येक माप में ८ हस्त है। इस नियमित गढ़े (खात ) में घनाकार समाई का मान क्या है ? ॥ ५॥ किसी नियमित खात के छेद का निरूपण करनेवाले समत्रिभुज क्षेत्र के संबंध में प्रत्येक भुजा ३२ हस्त है, और गहराई ३६ हस्त ६ अंगुल है। यहाँ समाई कितनी है ? ॥६॥ किसी नियमित खात के छेद (section ) का निरूपण करनेवाले समवृत्त क्षेत्र के संबंध में व्यास १०८ हस्त है, और खात की गहराई १६५ हस्त है। बतलाओ कि इस दशा में घनफल क्या है ? ॥ ७ ॥ किसी नियमित खात ( गढ्ढे ) के छेद का निरूपण करनेवाले आयत चतुर्भुज क्षेत्र की चौड़ाई २५ हस्त है, लंबाई ६० हस्त है और खात की गहराई १०८ हस्त है । इस नियमित खात की घनाकार समाई शीघ्र बतलाओ ॥८॥
परिणाम के रूप में प्राप्त कर्मान्तिक तथा औण्ड्र को ज्ञात कर उनकी सहायता से, खात संबंधी गणना में घनाकार समाई का सूक्ष्म रूप से ठीक मान निकालने के लिये नियम
(४) इस श्लोक का उत्तरार्द्ध स्पष्टतः उस विधि का वर्णन करता है, जिसके द्वारा हम किसी दिये गये अनियमित खात के समुचित रूप से तुल्य नियमित खात के विस्तारों को प्राप्त कर सकते हैं।