Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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खातव्यवहारः
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-८.५५३] भूमिमुखे द्विगुणे मुखभूमियुतेऽभग्नभूदययुतोने। दैर्योदयषष्ठांशघ्ने स्थितपतितेष्टकाः क्रमेण स्युः ॥ ५४३ ।।
अत्रोद्देशकः प्राकारोऽयं मूलान्मध्यावर्तेन चैकहस्तं गत्वा । कणोंकृत्या भग्नः कतीष्टकाः स्युः स्थिताश्च पतिताः काः॥५६३ ॥
तली की चौड़ाई और ऊपरी चौड़ाई में से प्रत्येक को दुगना किया जाता है। इनमें क्रमशः ऊपर की चौड़ाई और तली की चौड़ाई जोड़ी जाती है । परिणामी राशियाँ, क्रमशः, अपतित भाग की दीवाल की जमीन से ऊपर की ऊँचाई द्वारा बढ़ाई व घटाई जाती है। और इस प्रकार प्राप्त राशियाँ लंबाई द्वारा तथा संपूर्ण ऊँचाई के भाग द्वारा गुणित की जाती हैं । इस प्रकार शेष अपतित भाग तथा पतित भाग में क्रम से इंटों की संख्याएँ प्राप्त होती हैं ॥ ५४३।।
उदाहरणार्थ प्रश्न
पूर्वोक्त माप वाली यह किले की दीवाल चक्रवात वायु से टकराई जाकर तली से तिर्यक् रूप , से विकर्ण छेद पर टूट जाती है। इसके संबंध में, स्थित और पतित भाग की ईंटों की संख्याएँ क्याक्या हैं ? ॥ ५५ ॥ वही ऊंची दीवाल चक्रवात वायु द्वारा तली से एक हस्त ऊपर से तिर्यक रूप से टूटी है । स्थित और पतित भाग की ईंटों की संख्याएं कौन-कौन हैं ।। ५६३ ॥
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(५४२) यदि तली की चौड़ाई 'अ' हो, ऊपर की चौड़ाई 'ब' हो, 'ऊ' कुल ऊँचाई हो और दीवाल की लंबाई 'ल' हो, तथा 'द' जमीन से नापी गई अपतित दीवाल की ऊँचाई हो; तो
ऊ ( २अ+व+द ) और लऊ (२व + अ - द ) राशियाँ स्थित भाग और पतित भाग में ईटों की संख्याओं का निरूपण करती हैं। इस सूत्र से मिलता जुलता प्रतिपादन चीनी ग्रंथ च्यु-चांग सुआन-चु में हैं, जिसके विषय में कूलिज को अभ्युक्ति है, "यह विचित्र रूप से वर्णित ठोस (solid) त्रिभुजाकार लंब समपार्श्व ( traingular right prism ) का समच्छिन्नक है, और हमें यह सूत्र प्राप्त होता है कि यह घनफल समपार्श्व के आधार पर स्थित उन स्तू पों के योग के तुल्य होता है, जिनके शिखर सम्मुख फलक (face ) में होते हैं। यह सबसे अधिक हृदय भंजक साध्यों में से एक है, जिन्हें ग हम प्रारम्भिक ठोस ज्यामिति में पढ़ाते हैं। इसके आविष्कार का श्रेय लेजान्डू ( Legendre) को
१२ दिया गया है"-J. L. Coolidge, A History of Geometrical Methods, p. 22, Oxford, (1940 ). दी गई आकृति गाथा (श्लोक ) ५६५ में कथित दीवाल को दर्शाती है; और क ख ग घ वह समतल है जिस पर से दीवाल टूटते समय भग्न होती है।
ग० सा० सं०-३४