Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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गणितसारसंग्रहः
[ ८.५७
प्राकारमध्यप्रदेशोत्सेधे तरवृद्धयानयनस्य प्राकारस्य उभयपार्श्वयोः तरहानेरानयनस्य
च सूत्रम्
egged वेव तरप्रमाणमेकोनम् ।
मुखतलशेषेण हृतं फलमेव हि भवति तरहानिः ॥ ५७३ ॥
अत्रोदेशकः
प्राकारस्य व्यासः सप्त तले विंशतिस्तदुत्सेधः । एकेना घटितस्तरवृद्ध्य ने करोदयेष्टकया || ५८३ ॥ समवृत्तार्यां वायां व्यासचतुष्केऽर्धयुक्तकर भूमिः । घटितेष्टकाभिरभितस्तस्यां वेधस्त्रयः काः स्युः । घटितेष्टकाः सखे मे विगणय्य ब्रूहि यदि वेत्सि ॥ ६० ॥
इष्टकाघटितस्थले अधस्तलव्यासे सति ऊर्ध्वतलव्यासे सति च गणितन्यायसूत्रम्द्विगुणनिवेशो व्यासायामयुतो द्विगुणितस्तदायामः । आयतचतुरश्रे स्यादुत्सेधव्याससंगुणितः ॥ ६१ ॥
किले की दीवाल की केन्द्रीय ऊँचाई के संबंध में ( ईंटों के ) तलों की बढ़ती हुई संख्या को निकालने के लिए नियम, और नीचे से ऊपर की ओर जाते समय दीवाल की दोनों पार्श्वों की चौड़ाई में कमी होने से तहों की घटती ( की दर) निकालने के लिए नियम -
केन्द्रीय छेद की ऊँचाई, दी गई इष्टका ( ईंट) की ऊँचाई द्वारा भाजित होकर, इष्टकाओं की ती का इष्ट माप उत्पन्न करती है । यह संख्या, एक द्वारा हासित होकर और तब ऊपरी चौड़ाई तथा नीचे की चौड़ाई के अंतर द्वारा भाजित होकर, तलों के मान में ( in terms of layers ) मापी गई चौड़ाई की घटती की दर ( rate ) के मान को उत्पन्न करती है ॥ ५७३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
किसी ऊँची किले की दीवाल की तली में चौड़ाई ७ हस्त है । उसकी ऊँचाई २० हस्त है । वह इस तरह से बनी हुई है कि ऊपर चौड़ाई १ हस्त रहे । १ हस्त ऊँची इष्टकाओं की सहायता से केन्द्रीय ( तलों ) की वृद्धि तथा चौड़ाई की घटती ( की दर ) का माप बतलाओ ॥ ५८३ ॥
किसी समवृत्ताकार ४ हस्त व्यास वाली वापिका के चारों ओर १३ हस्त मोटी दीवाल पूर्वोक्त ईंटों द्वारा बनाई जाती है । वापिका की गहराई ३ हस्त है । यदि तुम जानते हो, तो हे मित्र, बतलाओ कि बनाने में कितनी ईंटें लगेंगी ? ॥ ५९३ - ६० ॥
किसी स्थान के चारों ओर बनी हुई संरचना की घनाकार समाई का मान निकालने के लिए नियम, जब कि संरचना का अधस्तल व्यास और ऊर्ध्वतल व्यास दिया गया हो
संरचना की औसत मुटाई की दुगनी राशि में दत्त व्यासायाम ( लंबाई एवं चौड़ाई ) का माप जोड़ा जाता है । इस प्रकार प्राप्त योग दुगना किया जाता है । परिणामी राशि संरचना की कुल लंबाई होती हैं, जबकि वह आयताकार रूप में होती है । यह परिणामी राशि, दी गई ऊँचाई और पूर्वोक्त औसत मुटाई से गुणित होकर, इष्ट घनफल का माप उत्पन्न करती है ॥ ६१ ॥
(५९३ - ६० ) यहाँ पूर्वोक्त श्लोक ४३३ में कथित एकक इष्टका मानी गई है । यह प्रश्न श्लोक ५७३ में दिये गये नियम को निदर्शित नहीं करता है । उसे इस अध्याय के १९३ - २०३ और ४४३ व श्लोकों के नियमानुसार साधित किया जाता है ।