Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-७. ११२३] क्षेत्रगणितव्यवहारः
[ २१३ पैशाचिकव्यवहारः इतः परं पैशाचिकव्यवहारमुदाहरिष्यामः।
समचतुरश्रक्षेत्रे वा आयतचतुरश्रक्षेत्रे वा क्षेत्रफले रज्जुसंख्यया समे सति, क्षेत्रफले बाहुसंख्यया समे सति, क्षेत्रफले कर्णसंख्यया समे सति, क्षेत्रफले रज्जवर्धसंख्यया समे सति, क्षेत्रफले बाहोस्तृतीयांशसंख्यया समे सति, क्षेत्रफले कर्णसंख्यायाश्चतुर्थांशसंख्यया समे सति, द्विगुणितकर्णस्य त्रिगुणितबाहोश्च चतुर्गुणितकोटेश्च रज्जोस्संयोगसंख्या द्विगुणीकृत्य तद्विगुणितसंख्यया क्षेत्रफले समाने सति, इत्येवमादीनां क्षेत्राणां कोटिभुजाकर्णक्षेत्रफलरज्जुषु, इष्टराशिद्वयसाम्यस्य चेष्टराशिद्वयस्यान्योन्यमिष्टगुणकारगुणितफलवतक्षेत्रस्य भुजाकोटिसंख्यानयनस्य सूत्रम्स्वगुणेष्टेन विभक्ताः स्वेष्टानां गणक गणितगुणितेन । गुणिता भुजा भुजाः स्युः समचतुरश्रादिजन्यानाम् ॥ ११२३ ॥
पैशाचिक व्यवहार ( अत्यन्त जटिल प्रश्न) इसके पश्चात् हम पैशाचिक विषय का प्रतिपादन करेंगे।
समायत (वर्ग) अथवा आयत के संबंध में आधार और लंब भुजा का संख्यात्मक मान निकालने के लिये नियम जब कि लंब भुजा, आधार, कर्ण, क्षेत्रफल और परिमिति में कोई भी दो मन से समान चुन लिये जाते हैं, अथवा जब क्षेत्र का क्षेत्रफल वह गुणनफल होता है जो मन से चुने हुए गुणकों (multipliers ) द्वारा क्रमशः उपर्युक्त तत्वों में से कोई भी दो राशियों को गुणित करने पर प्राप्त होता है: अर्थात्-समायत (वर्ग) अथवा आयत के सम्बन्ध में आधार और लंब भुजा का संख्यात्मक मान निकालने के लिए नियम जब कि क्षेत्र का क्षेत्रफल मान में परिमिति के तुल्य होता है; अथवा जब (क्षेत्र का क्षेत्रफल) आधार के बराबर होता है, अथवा जब (क्षेत्र का क्षेत्रफल) परिमिति के मापकी अर्द्धराशियों के तुल्य होता है; अथवा जब (क्षेत्र का क्षेत्रफल ) आधार की एक तिहाई राशि के बराबर होता है; अथवा जब (क्षेत्र का क्षेत्रफल) उस द्विगुणित राशि के तुल्य होता है जो उस राशि को दुगुनी करने पर प्राप्त होती है, और जिसे कर्ण की दुगुनी राशि, आधार की तिगुनी राशि, लब भुजा की चौगुनी राशि और परिमिति इत्यादि को जोड़ने पर परिणाम स्वरूप प्राप्त करते हैं
किसी मन से चुनी हुई इष्ट आकृति के आधार के माप को ( परिणामी) चुने हुए ऐसे गुणनखंड द्वारा भाजित करने पर, जिसका गुणा आधार से करने पर मन से चुनी हुई इष्ट आकृति का क्षेत्रफल उत्पन्न होता है ), अथवा ऐसी मन से चुनी हुई इष्ट आकृति के आधार को ऐसे गुणनखंड से गुणित करने पर, (कि जिसके दिये गये क्षेत्र के क्षेत्रफल में गुणा करने पर इष्ट प्रकार का परिणाम प्राप्त होता है) इष्ट समभुज चतुरश्र तथा अन्य प्रकार की प्राप्त आकृतियों के आधारों के माप उत्पन्न होते हैं ॥१२॥
(११२३) गाथा ११३३ में दिया गया प्रथम प्रश्न हल करने पर नियम स्पष्ट हो जावेगा
यहाँ प्रश्न में वर्ग की भुजा का माप तथा क्षेत्रफल का मान निकालना है, जब कि क्षेत्रफल परिमिति के बराबर है। मानलो ५ है भुजा जिसकी ऐसा वर्ग लिया जावे तो परिमिति २० होगी और क्षेत्रफल २५ होगा । वह गुणनखंड जिससे परिमिति के माप २० को गुणित करने पर क्षेत्रफल २५ हो जावे ' है। यदि ५, वर्ग की मन से चुनी हुई भुजा द्वारा भाजित की जाये, तो इष्ट चतुर्भुज की भुजा उत्पन्न होती है।