Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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क्षेत्रगणितव्यवहारः
[२२५
इष्टसूक्ष्मगणितफलवत्रिसमचतुरश्रक्षेत्रानयनसूत्रम्इष्टधनभक्तधनकृतिरिष्टयुतार्धं भुजा द्विगुणितेष्टम् । विभुजं मुखमिष्टाप्तं गणितं यवलम्बकं त्रिसमजन्ये ॥ १५०॥
__ अत्रोद्देशकः कस्यापि क्षेत्रस्य त्रिसमचतुर्बाहुकस्य सूक्ष्मधनम् । षण्णवतिरिष्टमष्टौ भूबाहुमुखावलम्बकानि वद ॥ १५१ ।।
तीन बराबर भुजाओं वाले ज्ञात क्षेत्रफल के चतुर्भुज क्षेत्र को प्राप्त करने के लिये नियम जब कि गुणक ( multiplier ) दिया गया हो
दिये गये क्षेत्रफल के वर्ग को दिये गये गुणक के धन द्वारा भाजित किया जाता है । तब दिये गये गुणकार को परिणामी भजनफल में जोड़ा जाता है। इस प्रकार प्राप्त योग की अराशि बराबर भुजाओं में से किसी एक का माप देती है। दिया गया गुणक २ से गुणित होकर, और तब प्राप्त बराबर भुजा ( जो अभी प्राप्त हुई है ऐसी समान भुजा) द्वारा हासित होकर, ऊपरी भुजा का माप देता है। दिया गया क्षेत्रफल दिये गये गुणक द्वारा भाजित होकर, तीन बराबर भुजाओं वाले इष्ट चतुर्भुज क्षेत्र के संबंध में ऊपरी भजा के अंतों से आधार पर गिराये गये समान लंबों में से किसी एक का मान देता है ॥१५०॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी ३ बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज क्षेत्र के संबंध में क्षेत्रफल का शुद्ध मान ९६ है। दिया गया गुणक ८ है। आधार, भुजाओं, ऊपरी भुजा और लंब के मापों को बतलाओ ॥ १५१ ॥
(१५०) नियम में कथन है कि दिये गये क्षेत्रफल को मन से चुनी हुई दत्त संख्या द्वारा भाजित करने पर इष्ट आकृति संबंधी लंच प्राप्त होता है। क्षेत्रफल का मान. आधार और ऊपरी भुजा के योग की अर्द्धराशि तथा लंब के गुणनफल के बराबर होता है। इसलिये दी गई चुनी हुई संख्या ऊपरी भुजा और आधार के योग की अर्द्धराशि का निरूपण करती है। यदि अब स द तीन बराबर भुजाओं वाला चतुर्भुज है, और स इ, स से अद पर गिराया गया लंब है, तो अ इ, अ द और ब स के योग की आधी होती है, और दी गई चुनी हुई संख्या के बराबर होती है। यह सरलता पूर्वक दिखाया जा सकता है कि अदxअइ=(स इ)+
(स इ२ अह) . भट (स इ) + (म इ)२ _ (स इ)२ ...अद%
अ इ . (अ ) + २अ इ
अइ (सह-अह)
+अइ
-
-
+
.
(अ
)9
+अइ
यहाँ सइ अइ-चतुर्भुज का दिया गया क्षेत्रफल है। यह अंतिम सूत्र, प्रश्न में तीन बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज की कोई भी एक बराबर भुजा का मान निकालने के लिये दिया गया है।
ग० सा० सं०-२९