Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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२३४]
गणितसारसंग्रहः
[-७. १७५३
द्विसमचतुरश्रक्षेत्रव्यावहारिकस्थूलफलसंख्यां ज्ञात्वा तव्यावहारिकस्थूलफले इष्टसंख्याविभागे कृते सति तद्विसमचतुरश्रक्षेत्रमध्ये तत्तद्भागस्य भूमिसंख्यानयनेऽपि तत्तत्स्थानावलम्बकसंख्यानयनेऽपि सूत्रम्खण्डयुतिभक्ततलमुखकृत्यन्तरगुणितखण्डमुखवर्गयुतम् । मूलमधस्तलमुखयुतदलहृतलब्धं च लम्बाकः क्रमशः ॥१७५३ ॥
- जब कोई दत्त व्यावहारिक माप वाला क्षेत्रफल किसी दी गई संख्या के भागों में विभाजित किया जाय, तब दो बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज क्षेत्र के उन विभिन्न भागों से आधारों के संख्यात्मक मानों तथा विभिन्न विभाजन बिन्दुओं से मापी गई भुजाओं के संख्यात्मक माप को निकालने के लिये नियम, जब कि दो भुजाओं वाले चतुर्भुज क्षेत्र के व्यावहारिक क्षेत्रफल का संख्यात्मक माप दिया गया हो
दो बराबर भुजाओं वाले दिये गये चतुर्भुज क्षेत्र के आधार और ऊपरी भुजा के संख्यात्मक मानों के वर्गों के अंतर को इष्ट अनुपाती भागों के कुल मान द्वारा भाजित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त भजनफल के द्वारा विभिन्न भागों के निष्पत्तियों के मान क्रमशः गुणित किये जाते हैं। प्राप्त गुणनफलों में से प्रत्येक में दिये गये चतुर्भुज की ऊपरी भुजा के माप का वर्ग जोड़ा जाता है। इस प्रकार प्राप्त योग का वर्गमूल, प्रत्येक भाग के आधार के मान को उत्पन्न करता है। प्रत्येक भाग का क्षेत्रफल, आधार और ऊपरी भुजा के योग की अर्द्धराशि द्वारा भाजित होकर, इष्ट क्रम में लंब का माप उत्पन्न करता है, जो सन्निकट माप के लिये भुजा की तरह वर्ता जाता है ॥ १०५३ ॥ २
(अ+द - ब१) - (अ, - ६१८ )। द+बना
- द.+ब +
२
= द, अथवा ब,............(४) यहाँ 'ना' इष्ट अथवा दत्त विकल्पित संख्या है। तीसरे और चौथे सूत्र वे हैं, जो प्रश्न का साधन करने के नियम में दिये गये हैं।
(१७५३ ) यदि च छ ज झ दो बराबर भुजाओं वाला चतुर्भुज हो, और इफ, गह और कल चतुर्भुज को इस तरह विभाजित करते हों कि विभाजित भाग क्षेत्रफल के संबंध में क्रमशः म, न, प, ख के अनुपात में हों, तो इस नियम के अनुसार,
जब भुजा च छ =अ, छ ज =द, ज झ = स और झचब है, तब इफ =/ द-बरे ,
म+न+प+ख
-
द-ब-_xम+ब२
...
क
;
-
गह EN
____x(म+न)+बरे म+न+प+ख
।
-
-
अ
कलEN
अ
-x(म+न+प)+बरे; V म+न+प+ख इत्यादि । इसी प्रकार,
-