Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-७. १८९३]
क्षेत्रगणितव्यवहार समचतुरश्रक्षेत्र विंशतिहस्तायतं तस्य । कोणेभ्योऽथ चतुभ्यो विनिर्गता रजवस्तत्र ॥ १८८३ ॥ भुजमध्यं द्वियुगभुजे' रज्जुः का स्यात्सुसंवीता। को वावलम्बकः स्यादाबाधे केऽन्तरे तस्मिन् ॥ १८९३ ॥
१. हस्तलिपि में अशुद्ध पाठ भुजचतुषु च है।
२. केऽन्तरे में संधि का प्रयोग व्याकरण की दृष्टि से अ.द्ध है; पर २०४३ वें श्लोक के समान यहाँ ग्रंथकार का प्रयोजन छंद हेतु स्वर सम्बन्धी मिलान है ।
चतुर्भुज की प्रत्येक भुजा २० हस्त है। उस आकृति के चारों कोण बिन्दुओं से, धागे सम्मुख भुजा के मध्य बिन्दु तक ले जाये जाते हैं, यह चारों भुजाओं के लिये किया जाता है । इस प्रकार प्रसारित धागों में प्रत्येक की लम्बाई का माप क्या है ? ऐसे चतुर्भुज क्षेत्र के भीतर अंतरावलम्बक और उससे उत्पन्न आबाधाओं के माप क्या हो सकते हैं ? ॥ १८८३-१८९३॥ ___स्तंभ की ऊँचाई का माप ज्ञात है। किसी कारणवश स्तंभ भग्न हो जाता है, और भग्न स्तंभ का ऊपरी भाग भूमि पर गिरता है। (भग्न स्तंभ का ) निम्न भाग उन्नत भाग के ऊपरी भाग पर भवलम्बित रहता है। तब स्तंभ के मूल से गिरे हुए ऊपरी अग्र ( जो अब भूमि को स्पर्श करता है ) की पैठिक (आधारीय ) दूरी ज्ञात की जाती है। स्तंभ के मूल भाग से लेकर शेष उन्नत भाग के माप
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म
क/
( १८८३-१८९३) इस प्रश्न के अनुसार दी गई आकृति इस प्रकार है:
यहाँ भीतरी लम्ब ग ह और क ल हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिये पहिले फइ को प्राप्त करते हैं। टीकानुसार
फ इ का माप = (सम) - {(दम) + (दइ) + ३ दम)२} है। अब, फइ और बस अथवा अद को स्तंभ मानकर संकेत में । कथित नियम प्रयोग में लाया जा सकता है।
(१९०३ ) यदि अ ब स समकोण त्रिभुज है सौर यदि मस का माप और अब तथा बस के योग का माप दिया गया हो तब, अब और ब स के माप इस समीकरण द्वारा निकाले जा सकते हैं कि बस = (अ ब) + (अस)२; नियम दिया गया सूत्र यह है :( अ ब+बस)-( अ स )२ , यह अर्हा उपर्युक्त
२(अब+(बस) ' समीकरण से सरलतापूर्वक सिद्ध किया जा सकता है।
अब: