Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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गणितसारसंग्रहः
[ ७. १५२
सूक्ष्मफलसंख्यां ज्ञात्वा चतुर्भिरिष्टच्छेदैश्च विषमचतुरश्रक्षेत्र स्यमुखभूभुजाप्रमाणसंख्यान
यनसूत्रम् - धनकृतिरिष्टच्छेदैश्चतुर्भिराप्तैव लब्धानाम् ।
युतिदलचतुष्टयं तैरूना विषमाख्यचतुरश्रभुजसंख्या ।। १५२ ।।
२२६ ]
अत्रोद्देशकः
नवतिर्हि सूक्ष्मगणितं छेदः पञ्चैव नवगुणः । दशधृतित्रिंशतिषट्कृतिहतः क्रमाद्विषमचतुरश्रे ॥
भूमिभुजा संख्या विगणय्य ममाशु संकथय ।। १५३३ ॥
४ दिये गये भाजकों की सहायता से, जब कि इष्ट चतुर्भुज क्षेत्र का क्षेत्रफल ज्ञात है, विषम चतुर्भुज क्षेत्र के संबंध में ऊपरी भुजा, आधार और अन्य भुजाओं के संख्यात्मक मान निकालने के लिये नियम
दिया गया क्षेत्रफल का वर्ग अलग अलग चार दिये गये भाजकों द्वारा भाजित किया जाता है, और चार परिणामी भजनफलों को अलग-अलग लिखा जाता है । इन भजनफलों के योग की अर्द्धशको चार स्थानों में लिखा जाता है, और क्रम में ऊपर लिखे हुए भजनफलों द्वारा क्रमशः हासित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त शेष, विषम चतुर्भुज की असमान नामक भुजाओं के संख्यात्मक मान को उत्पन्न करते हैं ॥ १५२ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
विषम चतुर्भुज के संबंध में क्षेत्रफल का शुद्ध माप ९० है । ५ को क्रमशः ९, १०, १८, २० और ३६ द्वारा गुणित करने पर चार दिये गये भाजकों की उत्पत्ति होती है । गणना के पश्चात् ऊपरी भुजा, आधार और अन्य भुजाओं के संख्यात्मक मानों को शीघ्र बतलाओ ॥ १५३-१५३३ ॥
(१५२) असमान भुजाओं वाले चतुर्भुज क्षेत्र का क्षेत्रफल पहिले ही बताया जा चुका है : Vय (य - अ) (य - ब ) ( य स ) (य-द) = चतुर्भुज का क्षेत्रफल, जहाँ य = परिमिति की अर्द्धराशि है, और अ, ब, स और द भुजाओं के माप हैं ( इसी अध्याय की ५० वीं गाथा देखिये ) । इस नियम के अनुसार क्षेत्रफल के मान को वर्गित कर, और तब चार मन से चुने हुए भाजकों द्वारा अलग-अलग भाजित करते हैं । यदि (य - अ) (य- ब ) ( य - स ) ( य - द ) को ऐसे चार उपयुक्त चुने हुए भाजकों द्वारा भाजित किया जाय कि य- अ, यब, य-स और य-द भजनफल प्राप्त हों, तो इन भजनफलों को जोड़कर, और उनके योग को आधा करने पर, य प्राप्त होता है । यदि य को क्रम से य-अ, यब, यस और य - द हासित किया जाय, तो शेष क्रमशः विषम चतुर्भुज की भुजाओं के मानों की प्ररूपणा करते हैं ।