Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh

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Page 276
________________ -७. १३७] क्षेत्रगणितव्यवहारः [२१९ अत्रोद्देशकः असमव्यासायामक्षेत्रे द्वे द्वावथेष्टगुणकारः। प्रथमं गणितं द्विगुणं रज्जू तुल्ये किमत्र कोटिभुजे ॥ १३४ ॥ आयतचतुरश्रे द्वे क्षेत्रे द्वयमेवगुणकारः । गणितं सदृशं रज्जुर्द्विगुणा प्रथमात् द्वितीययस्य ॥१३५।। आयतचतुरश्रे द्वे क्षेत्रे प्रथमस्य धनमिह द्विगुणम् । द्विगुणा द्वितीयरज्जुस्तयोर्भुजां कोटिमपि कथय ।। १३६ ।। द्विसमत्रिभुजक्षेत्रयोः परस्पररज्जुधनसमानसंख्ययोरिष्टगुणकगुणितरज्जुधनवतोर्वा द्विसमत्रिभुजक्षेत्रद्वयानयनसूत्रम्रज्जुकृतिघ्नान्योन्यधनाल्पाप्तं षद्विघ्नमल्पमेकोनम् । तच्छेषं द्विगुणाल्पं बीजे तज्जन्ययो(जादयः प्राग्वत् ॥ १३७ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न दो चतुर्भुज क्षेत्र हैं जिनमें से प्रत्येक असमान लंबाई और चौड़ाई वाला है। दिया गया गुणकार २ है। प्रथम क्षेत्र का क्षेत्रफल दूसरे के क्षेत्रफल से दुगुना है, और दोनों में परिमितियाँ बराबर हैं। इस प्रश्न में लंब भुजाएँ और आधार क्या-क्या हैं ?॥१३४॥ दो आयत क्षेत्र हैं और दिया गया गुणकार भी २ है। उनके क्षेत्रफल बराबर हैं परंतु दूसरे क्षेत्र की परिमिति पहिले की परिमिति से दुगुनी है। उनकी लंब भुजाएँ और आधारों को निकालो ॥१३५॥ दो आयत क्षेत्र दिये गये हैं। प्रथम का क्षेत्रफल दूसरे के क्षेत्रफल से दुगुना है। दूसरी आकृति की परिमिति पहिले की परिमिति से दुगुनी है। उनके आधारों और लंब भुजाओं के मानों को प्राप्त करो ॥ १३६ ॥ ऐसे समद्विबाहु त्रिभुजों के युग्म को प्राप्त करने के लिये नियम, जिनकी परिमितियाँ और क्षेत्रफल आपस में बराबर हों अथवा एक दूसरे के अपवर्त्य हों इष्ट समद्विबाहु त्रिभुजों की परिमितियों के निष्पत्तिरूप मानों के वर्गों में उन त्रिभुजों के क्षेत्रफल के निष्पत्तिरूप मानों द्वारा एकान्तर गुणन किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त दो गुणनफलों में से बढ़ा छोटे के द्वारा विभाजित किया जाता है। तथा अलग से दो के द्वारा भी गुणित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त गुणनफलों में से छोटा गुणनफल के द्वारा हासित किया जाता है। बड़ा गुणनफल और हासित छोटा गुणनफल ऐसे भायतक्षेत्र के संबंध में दो बीजों की संरचना करते हैं, जिनसे इष्ट त्रिभुजों में से एक प्राप्त किया जाता है। उपर्युक्त इन दो बीजों के अंतर और इन बीजों में छोटे की दुगुनी राशि : ये दोनों ऐसे आयत क्षेत्र के संबंध में बीजों की संरचना करते हैं, जिनसे दूसरा इष्ट त्रिभुज प्राप्त किया जाता है। अपने क्रमवार बीजों की सहायता से बनी हुई दो आयताकार आकृतियों में से, इष्ट त्रिभुजों संबंधी भुजाएँ और अन्य बातें ऊपर समझाये अनुसार प्राप्त की जाती हैं ॥१३॥ (१३७) दो समद्विबाहु त्रिभुजों की परिमितियों की निष्पत्ति अ : ब हो, और उनके क्षेत्रफलों की ६बस.२वस ....४बस निष्पत्ति स:द हो, तब नियमानुसार और 4 -१तथाअद अदद अद ये बीजों के दो कुलक ( ts) हैं, जिनकी सहायता से दो समद्विबाह त्रिभुजों के विभिन्न

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