Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh

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Page 267
________________ गणित सारसंग्रहः अत्रोद्देशकः एकद्विकद्विकत्रिकजन्ये चोत्थाप्य विषमचतुरश्रे । मुखभूभुजावलम्बककर्णाबाधाधनानि वद ।। १०४३ ।। पुनरपि विषमचतुरश्रानयनसूत्रम् - ह्रस्वतिकृतिगुणितो ज्येष्ठभुजः कोटिरपि धरा वदनम् । कर्णाभ्यां संगुणितावुभयभुजावल्पभुजकोटी ।। १०५३ ।। ज्येष्ठभुज कोटिवियुतिद्विधाल्पभुजकोटिताड़िता युक्ता । ह्रस्वभुजको टियुतिगुणपृथुकोट्यात्पश्रुतिनकौ कर्णौ ॥ १०६३ ॥ अल्पश्रुतिहृतकर्णाल्पकोटिभुजसंहती पृथग्लम्बौ । तद्भुजयुतिवियुतिगुणात्पदमाबाधे फलं श्रुतिगुणार्धम् ॥ १०७३ ।। २१० ] [ ७.१०४ उदाहरणार्थ प्रश्न १ और २ तथा २ और ३ बीजों को लेकर, दो आकृतियाँ प्राप्त कर, विषम चतुर्भुज के संबंध में ऊपर की भुजा, आधार, बाजू की भुजाओं, लम्बों, कर्णौ, आधार के खंडों और क्षेत्रफल के मापों को बतलाओ ॥ १०४ ॥ विषम चतुर्भुज के संबंध में भुजाओं के माप आदि को प्राप्त करने के लिए दूसरा नियमदो प्राप्त आयतों में छोटी आकृति के कर्णं के वर्ग को, अलग-अलग, आधार और बड़े भायत की लंब भुजा द्वारा गुणित करने से विषम इष्ट चतुर्भुज के आधार और ऊपरी भुजा के माप उत्पन्न होते हैं। छोटे आयत का आधार और लम्ब भुजा, प्रत्येक उत्तरोत्तर, उपरोक्त आयत क्षेत्रों के प्रत्येक के कर्णं द्वारा गुणित होकर क्रमशः इष्ट चतुर्भुज की दो पार्श्व भुजाओं को उत्पन्न करते हैं । बड़ी आकृति ( आयत ) के आधार और लम्ब भुजा का अंतर, अलग-अलग दो स्थानों में रखा जाकर, छोटी आकृति के आधार और लम्ब भुजा द्वारा गुणित किया जाता । इस क्रिया के दो परिणामी गुणनफल अलगअलग उस गुणनफल में जोड़े जाते हैं, जो छोटे आयत के आधार और लंब भुजा के योग को बड़े आयतको लम्ब भुजा से गुणित करने पर प्राप्त होता है । इस प्रकारप्राप्त दो योग जब छोटे आयत के कर्ण द्वारा गुणित किये जाते हैं, तो इष्ट चतुर्भुज क्षेत्र के दो कर्णों के माप प्राप्त होते हैं । इष्ट चतुर्भुज क्षेत्र के कर्णों को अलग-अलग छोटे आयत के कर्ण द्वारा भाजित किया जाता 1 इस प्रकार प्राप्त भजनफलों को क्रमशः छोटे भायत की लम्ब भुजा और आधार द्वारा गुणित किया जाता है | परिणामी गुणनफल इष्ट चतुर्भुज क्षेत्र के लंबों के मापों को उत्पन्न करते हैं । इन दो लंबों में ( आधार और ऊपरी भुजा छोड़कर ) उपर्युक्त दो भुजाओं के मानों को अलग-अलग जोड़ा जाता है । बड़ी भुजा, बड़े लम्ब में और छोटी भुजा छोटे लंब में । इन लंबों और भुजाओं के अंतर भी उसी क्रम मैं प्राप्त किये जाते हैं । उपर्युक्त योग क्रमशः इन अंतरों द्वारा गुणित किये जाते हैं। इस प्रकार प्राप्त गुणनफलों के वर्गमूल इष्ट चतुर्भुज संबंधी आधार के खंडों के मानों को उत्पन्न करते हैं । इष्ट चतुर्भुज क्षेत्र के कर्णों के गुणनफल की आधी राशि उसका क्षेत्रफल होती है ॥१०५ - १०७३ ॥ मानलो दिये गये बीजों के दो कुलक ( sets ) अ, ब और स, द हैं। तब विभिन्न इष्ट तत्त्व निम्नलिखित होंगे बाजू की भुजाएँ = २ अ ब (स े + द े) (अ' + ब') और (अरे – बर) (स' + द े) (अ + ब±) आधार = १ स द ( अ' + ब' ) ( अ + ब' )

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