Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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२०६ ]
गणित सारसंग्रहः
अत्रोदेशकः
कस्यापि कोटिरेकादश बाहुः षष्टिरन्यस्यः । श्रुतिरेकषष्टिरन्यास्यानुक्तान्यत्र मे कथय ॥ ९८३ ॥ द्विसमचतुरश्रक्षेत्रस्यानयनप्रकारस्य सूत्रम् - जन्यक्षेत्र भुजार्धहारफलजप्राग्जन्य कोट्योर्युतिर्भूरास्यं वियुतिर्भुजा श्रुतिरथाल्पाल्पा हि कोटिर्भवेत् । महती श्रुतिः श्रुतिरभूज्ज्येष्ठं फलं स्यात्फलं बाहुः स्यादवलम्बको द्विसमकक्षेत्रे चतुर्बाहुके ॥ ९९३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
किसी आकृति के संबंध में, लम्ब भुजा ११ है, दूसरी आकृति के संबंध में अन्य ( दूसरी ) भुजा ६० है, और तीसरी आकृति के संबंध में कर्ण ६१ है । इन तीन दशाओं में अज्ञात भुजाओं के मापों को बतलाओ ॥ ९८ ॥
[ ७.९८३
दिये गये बीजों की सहायता से दो बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज क्षेत्र को प्राप्त करने की रीति के संबंध में नियम
दिये गये बीजों की सहायता से प्राप्त प्रथम आयत की लम्ब भुजा को दूसरी आकृति ( जिसे मूलतः प्राप्त आकृति के आधार की अर्द्धराशि के मन से चुने हुए दो गुणनखंडों को बीज मानकर प्राप्त किया गया है ऐसी आकृति ) की लम्ब भुजा में जोड़नेपर दो बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज क्षेत्र का आधार उत्पन्न होता है। इन दो लम्बों के मापों के अन्तर से चतुर्भुज की ऊपरी भुजा उत्पन्न होती है। पूर्व कथित दो प्राप्त आकृतियों का छोटा कर्णं दो बराबर भुजाओं में से किसी एक का माप होता है । उन दो प्राप्त आकृतियों के सम्बन्ध में दो लम्ब भुजाओं में से छोटी भुजा, आधार के उस छोटे खंड का माप होती है जो ऊपरी भुजा के अंतों में से किसी एक से आधार पर लम्ब गिराने से बनता है । उन दो प्राप्त आकृतियों के सम्बन्ध में बड़ा कर्ण इष्ट कर्ण का माप होता है। उन दो प्राप्त आकृतियों में से बड़े का क्षेत्रफल इष्ट आकृति का क्षेत्रफल होता है; और उन दो आकृतियों में से किसी एक का आधार, ऊपरी भुजा के अंतों में से किसी एक से आधार पर गिराये गये लम्ब का माप होता है ॥ ९९३ ॥
(अ° -बर)° ° (अ−ब)± } ÷ २= अ + ब' अथवा २ अ ब (दशानुसार ) ( अ - ब ) 2
१ )
२ ) { ३)/(अ’+ ब±
(२ अ ब ) र २ ब
` ° २ ब' } )± − ( २
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(९९) इस गाथा में कथित नियम के अनुसार साधन किया जाने वाला प्रश्न यह है कि दो दिये गये बीजों की सहायता से दो बराबर भुजाओं वाले चतुर्भुज क्षेत्र की रचना किस प्रकार करना लम्बों तथा लम्ब के कारण संरचित दो आयतों में से निकालना पड़ती । इनमें से प्रथम आयत क्षेत्र ऊपर गाथा ९०३ में दिये गये नियमानुसार बनाया जाता है। प्रथम आयत के आधार की लम्बाई की अर्द्धराशि के मन से चुने हुए दो गुणनखंडों में से उसी नियम के अनुसार दूसरा आयत क्षेत्र बनता है । ( उन दो गुणनखंडों को बीज मान लेते हैं।) इसलिये अत्र हम प्रथम आयत को, दूसरे आयत क्षेत्र से अलग पहिचानने के लिये, प्राथमिक आकृति कहेंगे ।
÷ २ = अ + ब' अथवा अर - ब
अ ब )२ = अ' – बर
चाहिये । भुजाओं, कर्णों और ऊपरी भुजा के अंतों से आधार पर गिराये गये
उत्पन्न हुए खंडों की लम्बाइयों दिये गये बीजों की सहायता से