Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-७. ८३३ ] क्षेत्रगणितव्यवहारः
[२०१ अत्रोद्देशकः पृष्ठं चतुर्दशोदरमष्टौ नेम्याकृतौ भूमौ । मध्ये चत्वारि च तद्बालेन्दोः किमिभदन्तस्य ॥ ८१३ ।।
चतुर्मण्डलमध्यस्थितक्षेत्रस्य सूक्ष्मफलानयनसूत्रम्विष्कम्भवर्गराशेवृत्तस्यैकस्य सूक्ष्मफलम् । त्यक्त्वा समवृत्तानामन्तरजफलं चतुर्णा स्यात् ।। ८२३ ।।
अत्रोद्देशकः गोलकचतुष्टयस्य हि परस्परस्पर्श कस्य मध्यस्य । सूक्ष्मं गणितं किं स्याच्चतुष्कविष्कम्भयुक्तस्य ।। ८३३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न नेमिक्षेत्र के संबंध में बाहरी वक्र १४ है और भीतरी ८ है। बीच में चौदाई ४ है। क्षेत्रफल क्या है ? बालेन्दु क्षेत्र तथा इभदन्ताकार क्षेत्र की आकृतियों का क्षेत्रफल भी क्या होगा ? ॥१३॥
चार, एक दूसरे को स्पर्श करने वाले, वृत्तों के बीच के क्षेत्र (चतुर्मण्डल मध्यस्थित क्षेत्र) के सूक्ष्म क्षेत्रफल को निकालने के लिये नियम
किप्ती भी एक वृत्त के क्षेत्रफल का सूक्ष्म माप यदि उस वृत्त के व्यास को वर्गित करने से प्राप्त राशि में से घटाया जाय, तो पूर्वोक्त क्षेत्र का क्षेत्रफल प्राप्त होता है ॥ ८२३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न चार एक दूसरे को स्पर्श करने वाले वृत्तों के बीच का क्षेत्रफल निकालो (जब कि प्रत्येक वृत्त का ग्यास " है ) ॥८३२॥
(कंकण) की चौड़ाई है। इस नेमिक्षेत्र के क्षेत्रफल की तुलना गाथा ७ में दिये गये नोट में वर्णित आनुमानिक मान से की जाय, तो स्पष्ट होगा कि यह सूत्र शुद्ध मान नहीं देता। गाथा ७ में दिया गया मान शुद्ध मान है। यह गलती, एक गलत विचार से उदित हुई मालूम होती है। इस क्षेत्रफल के मान को निकालने के लिये, 7 का उपयोग प, और प, के मानों में अपेक्षाकृत उलटा किया गया है। इसके सम्बन्ध में जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (१०/९१) और त्रिलोक प्रज्ञप्ति ( ४/२५२१-२५२२ ) में दिये गये सूत्र दृष्टव्य हैं। (८२३) निम्नलिखित आकृति से इस नियम का मूल | ( ८४३ ) इसी प्रकार, यह आकृति भी नियम के कारण स्पष्ट हो जावेगा।
कारण को शीघ्र ही स्पष्ट करती है।
वर्ग
सम त्रिभुज
ग. सा. सं०-२६