Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
View full book text
________________
-३. १३६]
कलासवर्णव्यवहारः
अत्रोद्देशक कश्चित्स्वकैश्चरणपश्चमभागषष्ठः कोऽप्यंशको दलषडंशकपश्चमांशैः। हीनोऽपरो द्विगुणपञ्चमपादषष्ठैः तत्संयुतिर्दलमिहाविदितांशकाः के ॥१३३।। कोऽप्यंशस्स्वार्धषड्भागपञ्चमाष्टमसप्तमैः । विहीनो जायते षष्ठः स कोऽशो गणितार्थवित् ॥१३४॥
शेषेष्ठस्थानाव्यक्तभागानयनसूत्रम्लब्धात्कल्पितभागाः सवर्णितैय॑क्तराशिभिभक्ताः । रूपात्पृथगपनीताः स्वेष्टपदेष्वविदितांशाः स्युः ॥१३५।।
इति भागापवाहजातिः । भागानुबन्धभागापवाहजात्योः सर्वा व्यक्तभागानयनसूत्रम्त्यक्त्वैकं स्वेष्टांशान् प्रकल्पयेदविदितेषु सर्वेषु । ऐतैस्तं पुनरंशं प्रागुक्तैरानयेत्सूत्रैः॥१३६॥ १ P, K और B में जायते के लिए तद्यतिः ।
उदाहरणार्थ प्रश्न
___ कोई भिन्न निज की और राशियों द्वाराअनुगमन में ( in consecution) हासित किया जाता है। दूसरा भिन्न भी इसी तरह निज के ३., और ६ भागों द्वारा हासित किया जाता है। तीसरा भिन्न भी इसी तरह निज के और भागों द्वारा हासित किया जाता है। इन तीनों द्वासित राशियों का योग है। बतलाओ कि वे अज्ञात भिन्न कौन-कौन हैं ? ॥१३३॥ कोई भिन्न निज के ३, ६ तथा है और भागों द्वारा अनुगमन में हासित किया जाता है और इस तरह हो जाता है । हे अंकगणित सिद्धान्त वेत्ता ! बतलाओ कि वह अज्ञात क्या है ? ॥१३॥
अन्य चाहे हुए स्थानों वाला कोई अज्ञात भिन्न निकालने के नियम
दिये गये योग से प्राप्त मन से चुने हुए विपाटित भाग क्रमशः इष्ट भागापवाह भिन्नों वाली सरलीकृत ज्ञात राशियों द्वारा विभाजित होकर और तब 9 में से अलग अलग घटाये जाकर, चाहे हुए स्थानों की भिन्नीय राशियाँ हो जाते हैं ॥१३५॥
इस प्रकार कलासवर्ण षड्जाति में भागापवाह जाति नामक परिच्छेद समाप्त हुआ।
भागानुबन्ध अथवा भागापवाह प्रकार के भिन्नों के सम्बन्ध में अंतिममान ज्ञात होने पर ( सर्व स्थान वाले) अज्ञात भिन्नों को निकालने के लिये नियम
मन से, इच्छानुसार, केवल एक स्थान छोड़कर सब अज्ञात स्थानों सम्बन्धी भिन्न चुनो। तब ऊपर लिखे हुए नियमों द्वारा, उस अज्ञात भिन्न को, इन मन से चुनी हुई भिन्नीय राशियों की सहायता से प्राप्त करो ॥१३६॥
( १३५ ) गाथा १२५ में दिये गये नियम के समान यह भी है । (१३६ ) १२२, १२५, १३२ और १३५ गाथाओं में दिये गये नियमानुसार यह भी है । ग० सा० सं०-९