Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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[६.२९९
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गणितसारसंग्रहः पुनरपि इष्टाद्युत्तरपदवर्गसंकलितानयनसूत्रम्द्विगुणैकोनपदोत्तरकृतिहतिरेकोनपदहताङ्गहृता । व्येकपदादिचयाहतिमुखकृतियुक्ता पदाहता सारम् ।। २९९ ।।
अत्रोद्देशकः त्रीण्यादिः पञ्च चयो गच्छः पञ्चास्य कथय कृतिचितिकाम् । पश्चादिस्त्रीणि चयो गच्छः सप्तास्य का च कृतिचितिका ॥ ३०० ।।
घनसंकलितानयनसूत्रम्गच्छार्धवर्गराशी रूपाधिकगच्छवर्गसंगुणितः । घनसंकलितं प्रोक्तं गणितेऽस्मिन् गणिततत्त्वज्ञैः ।। ३०१ ।।
अत्रोद्देशकः षण्णामष्टानामपि सप्तानां पंचविंशतीनां च । षट्पंचाशन्मिश्रितशतद्वयस्यापि कथय घनपिण्डम् ॥ ३०२ ।।
पुनः समान्तर श्रेणी में कोई संख्या के पदों के वर्गों का योग निकालने के लिये अन्य नियम, जहाँ प्रथम पद, प्रचय, और पदों की संख्या दी गई हो
श्रेणी के पदों की संख्या की दुगुनी राशि एक द्वारा हासित की जाती है, और तब प्रचय के वर्ग द्वारा गुणित की जाती है। प्राप्तफल एक कम पदों की संख्या द्वारा गुणित किया जाता है। यह गुणनफल ६ द्वारा भाजित किया जाता है। इस परिणामी भजनफल में, प्रथम पद का वर्ग तथा एक कम पदों की संख्या का योग, प्रथम पद, और प्रचय, इन तीनों का संतत गुणनफल जोड़ा जाता है । इस प्रकार प्राप्त फल, पदों की संख्या द्वारा गुणित होकर, इष्ट फल को उत्पन्न करता है ॥ २९९ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी समान्तर श्रेणी में प्रथम पद ३ है, प्रचय ५ है, तथा पदों की संख्या ५ है । श्रेणी के पदों के वर्गों के योग को निकालो। इसी प्रकार, दूसरी समान्तर श्रेढि में प्रथम पद ५ है, प्रचय
१३ है, और पदों की संख्या ७ है। इस श्रेणी के पदों के वर्गों का योग क्या है ? ।। ३०० ।।।
किसी दी हुई संख्या की प्राकृत संख्याओं के घनों के योग को निकालने के लिये नियम
पदों की दी गई संख्या की अर्द्धराशि के वर्ग द्वारा निरूपित राशि को १ अधिक पदों की संख्या के योग के वर्ग द्वारा गुणित करते हैं । इस गणित में, यह फल गणिततस्वज्ञों द्वारा (दी हुई संख्या की) प्राकृत संख्याओं के घनों का योग कहा गया है । ३०१ ।।
___ उदाहरणार्थ प्रश्न प्रत्येक दशा में ६, ८, ७, २५ और २५६ पदों वाली प्राकृत संख्याओं के धनों का योग बतलाओ ॥ ३०२ ॥
(३०१ ) बीजीय रूप से, (न/३)२ (न+१)२ = शा, जो न पदों तक की प्राकृत संख्याओं के घनों का योग है।