Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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१९२]
गणितसारसंग्रहः
[७.४७
बहिरन्तश्चतुरश्रकवृत्तस्य व्यावहारिकफलानयनसूत्रम्बाह्ये वृत्तस्येदं क्षेत्रस्य फलं त्रिसंगुणं दलितम् । अभ्यन्तरे तदर्धं विपरीते तत्र चतुरश्रे ।। ४७ ।।
__ अत्रोद्देशकः पञ्चदशबाहुकस्य क्षेत्रस्याभ्यन्तरं बहिर्गणितम् । चतुरश्रस्य च वृत्तव्यवहारफलं ममाचक्ष्व ॥४८॥
इति व्यावहारिकगणितं समाप्तम् ।
अथ सूक्ष्मगणितम् इतः परं क्षेत्रगणिते सूक्ष्मगणितव्यवहार मुदाहरिष्यामः । तद्यथा' आवाधावलम्बकानयनसूत्रम्भुजकृत्यन्तरभूहृतभूसंक्रमणं त्रिबाहुकाबाधे । तद्भुजवर्गान्तरपदमवलम्बकमाहुराचार्याः ॥४९॥
१. इसके पश्चात् M में निम्नलिखित और जुड़ा हैत्रिभुज क्षेत्रस्य भुजद्वयसंयोगस्थानमारभ्यअधस्स्थित भूमि संस्पृष्ट रेखाया नाम अवलम्बकः स्यात् ।
चतुर्भुज के बहिलिखित और अन्तलिखित वृत्त के क्षेत्रफल के न्यावहारिक मान को निकालने के लिये नियम--
अंतलिखित चतुर्भुज के क्षेत्रफल के माप की तिगुनी राशि की अर्द्धराशि ऐसे बाहरी परिगत वृत्त के क्षेत्रफल का माप होती है। उस दशा में जबकि वृत्त अन्तलिखित हो और चतुर्भुज बहिर्गत हो, तब ऊपर के प्राप्त माप की अर्द्धराशि इष्ट राशि होती है ॥ ४७ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
चतुर्भुज क्षेत्र की प्रत्येक भुजा १५ है। मुझे अंतर्गत और बहिर्गत वृत्तों के व्यावहारिक क्षेत्रफल के माप बतलाओ ॥४८॥ इस प्रकार क्षेत्रगणित व्यवहार में व्यावहारिक गणित नामक प्रकरण समाप्त हुआ।
सूक्ष्म गणित इसके पश्चात् हम गणित में क्षेत्रफलों के माप सम्बन्धी सूक्ष्म गणित नामक विषय का प्रतिपादन करेंगे। वह इस प्रकार है
किसी दिये हुए त्रिभुज के आबाधाओं (खंड जिनमें को आधार लम्ब के द्वारा विभाजित हो जाता है ) और अवलम्ब (शीर्ष से आधार पर गिराया हआ लम्ब) के माप निकालने के लिये नियम
भुजाओं के वर्गों को भाधार द्वारा भाजित करने से प्राप्त राशि और आधार के बीच संक्रमण क्रिया करने से त्रिभुज की आबाधाओं ( आधार के खंडों) के माप प्राप्त होते हैं। आचार्य कहते हैं कि इन आबाधाओं में से एक, और संवादी आसन्न भुजा के वर्गों के अंतर का वर्गमूल अवलम्ब का माप होता है ॥४९॥
(४७) यहाँ दिया गया सूत्र वर्ग के सम्बन्ध में ठीक माप देता है, परन्तु अन्य चतुर्भुजों के सम्बन्ध में जब 7 का मान ३ लेते हैं, तब केवल आनुमानिक मान प्राप्त होता है।
(४९ ) बीजीय रूप से प्ररूपित होने पर