Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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गणितसारसंग्रहः
अत्रोद्देशकः षड्बाहुकस्य बाहोविष्कम्भः पञ्च चान्यस्य । व्यासस्त्रयो भुजस्य त्वं षोडशबाहुकस्य वद ।। ४० ।। त्रिभुजक्षेत्रस्य भुजः पञ्च प्रतिबाहुरपि च सप्त धरा षट् । अन्यस्य षडश्रस्य ह्येकादिषडन्तविस्तारः ॥ ४१ ।। मण्डलचतुष्टयस्य हि नवविष्कम्भस्य मध्यफलम् । षट्पञ्चचतुळसा वृत्तत्रितयस्य मध्यफलम् ॥ ४२ ॥
धनुराकारक्षेत्रस्य व्यावहारिकफलानयनसूत्रम्कृत्वेषुगुणसमासं बाणाधगुणं शरासने गणितम् । शरवर्गात्पश्चगुणाज्ज्यावर्गयुतात्पदं काष्ठम् ।। ४३ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न ___ छ: भुजाओं वाली आकृति की एक भुजा ५ है, और १६ भुजाओं वाली आकृति की एक भुजा ३ है। प्रत्येक दशा में क्षेत्रफल बताओ ॥४०॥ त्रिभुज के सम्बन्ध में एक भुजा ५ है, सम्मुख (दूसरी ) भुजा ७ है, और आधार ६ है। दूसरी छः भुजाकार आकृति में भुजाएँ क्रमवार १ से ६ तक हैं । प्रत्येक दशा में क्षेत्रफल क्या है ? ॥४१॥ जिनमें से प्रत्येक का ग्यास ९ है, ऐसे चार समान एक दूसरे को स्पर्श करने वाले वृत्तों द्वारा घिरे हुए क्षेत्र का क्षेत्रफल क्या है? तीन एक दूसरे को स्पर्श करने वाले क्रमशः ६, ५ और ४ माप के व्यासवाले वृत्तों के द्वारा घिरे हुए क्षेत्र का क्षेत्रफल भी बतलाओ॥ ४२ ॥
धनुष के आकार की रूपरेखा है जिसकी ऐसे आकार वाली आकृति का व्यवहारिक क्षेत्रफल निकालने के लिये नियम
बाण और ज्या (कृति या डोरी) के मापों को जोड़कर योगफल को बाण के माप की अर्द्ध राशि द्वारा गुणित करने से, धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल प्राप्त होता है। बाण के माप के वर्ग को ५ द्वारा गुणित कर, और तब उसमें कृति (डोरी) के वर्ग को मिलाने से प्राप्त राशि का वर्गमूल धनुष की धनुषाकार काष्ठ की लम्बाई होती है ।। ४३ ॥ क्षेत्रफल देता है | यदि भुजाओं के मापों के योग की आधी राशि य हो, और भुजाओं की संख्या न हो,
तो क्षेत्रफल ='x' होता है । यह सूत्र त्रिभुज, चतुर्भुज, षटभुज, और वृत्त को अनन्त भुजाओं की आकृति मानकर, उनके सम्बन्ध में व्यावहारिक क्षेत्रफल का मान देता है। नियम का दूसरा भाग एक दूसरे को स्पर्श करने वाले वृत्तों के द्वारा घिरे क्षेत्र के विषय में है। इस नियमानुसार प्राप्त क्षेत्रफल भी आनुमानिक होता है। पार्श्व में दिया गया चित्र, चार संस्पर्शी वृत्तों द्वारा सीमित क्षेत्र है।
(४३) धनुषाकार क्षेत्र रूपरेखा में, वास्तव में, वृत्त की अवधा (खण्ड ) जैसा होता है। यहाँ धनुष चाप है, धनुष की डोरी ( ज्या) चापकर्ण है, और बाण चाप तथा डोरी के बीच की महत्तम लम्ब रूप दूरी होती है। यदि च, क और ल इन तीनों रेखाओं की लम्बाईयों को निरूपित करते हों, तो गाथा ४३ और ४५ में दिये नियमों के अनुसार यहाँ