Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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१८०] गणितसारसंग्रहः
[ ६. ३३७३अत्रोद्देशकः संख्या प्रस्तारविधिं नष्टोद्दिष्टे लगक्रियाध्वानौ । षट्प्रत्ययांश्च शीघ्र त्र्यक्षरवृत्तस्य मे कथय ॥३३७२।।
इति मिश्रकव्यवहारे श्रेढीबद्धसङ्कलितं समाप्तम् । इति सारसंग्रहे गणितशास्त्रे महावीराचार्यस्य कृतो मिश्रकगणितं नाम पञ्चमव्यवहारः समाप्तः ।।
उदाहरणार्थ प्रश्न ३ अक्षरों (syllables ) वाले छन्द के सम्बन्ध में ६ प्रत्ययों को बतलाओ-.
(.) छन्द के सम्भव श्लोकों ( stanzas) की महत्तम संख्या, (२) उन श्लोकों में अक्षरों के विन्यास का क्रम, (३) किसी दिये गये प्रकार के श्लोकों में अक्षरों (शब्दांशों) का विन्यास, जहाँ छन्द में सम्भव प्रकारों की क्रमसूचक स्थिति ज्ञात है, (४) दिये गये श्लोक की क्रमसूचक स्थिति, (५) किसी दी गई लघु या गुरु अक्षरों ( शब्दांशों) की संख्यावाले दिये गये छन्द ( metre) में इलोकों की संख्या, और ( ६ ) अध्वान नामक राशि ॥३३७३॥
इस प्रकार, मिश्रक व्यवहार में श्रेढिबद्ध संकलित नामक प्रकरण समाप्त हुआ।
इस प्रकार, महावीराचार्य की कृति सारसंग्रह नामक गणितशास्त्र में मिश्रक नामक पञ्चम व्यवहार समाप्त हुआ।
को उत्तरवर्ती गुणनफल द्वारा भाजित करते हैं । भजनफल ३ इष्ट उत्तर है।
(६) ऐसा कहा गया है कि छन्द के किसी भी प्रकार के गुरु और लघु शब्दांशों के निरूपण करनेवाले प्रतीक, एक अंगुल उदग्र ( vertical) जगह ले लेते हैं, और कोई भी दो विभेदों के बीच का अंतराल (जगह) भी एक अंगुल होना चाहिये। इसलिये, इस छन्द के ८ प्रकारों (विभेदों) के लिये इष्ट उदग्र ( vertical ) जगह का परिमाण २४८-१ अथवा १५ अंगुल होता है।