Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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क्षेत्र गणितव्यवहारः
अत्रोद्देशकः
त्रिभुजक्षेत्रस्याष्टौ बाहुप्रतिबाहुभूमयो दण्डाः । तद्वयावहारिकफलं गणयित्वाचक्ष्व मे शीघ्रम् ॥८॥ बाहर की परिधियों के योग की अर्द्धराशि को कङ्कण की चौदाई से गुणित करने पर प्राप्त होता है । इस फल का यहाँ बालचन्द्रमा सदृश आकृति का क्षेत्रफल होता है ॥ ७ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
त्रिभुज के सम्बन्ध में, भुजा, सम्मुख भुजा, और आधार का माप ८ दंड है; मुझे शीघ्र ही बतलाओ कि इसका व्यावहारिक क्षेत्रफल क्या है ? ॥ ८ ॥ दो बराबर भुजाओं वाले त्रिभुज के सम्बन्ध
( १३ )
( १४ )
-७. ८ ]
निम्नवृत्त ( नतोदर वृत्तीय क्षेत्र ) ( १५ )
[ १८३
उन्नत वृत्त (उन्नतोदर वृत्तीय क्षेत्र )
( १६ )
O
बहिश्चक्रवाल वृत्त ( बाहर स्थिति कङ्कण )
अंतश्चल वालवृत्त ( भीतर स्थित कङ्कण )
चतुर्भुज क्षेत्रों के क्षेत्रफल और अन्य मापों के दिये गये नियमों पर विचार करने पर ज्ञात होगा कि यहाँ कहे गये चतुर्भुज क्षेत्र चक्रीय ( वृत्त में अन्तलिखित ) हैं । इसलिये समचतुरश्र यहाँ वर्ग है, द्वि-द्विप्समचतुरश्र आयत है, और द्विसमचतुरश्र तथा त्रिसमचतुरश्र की ऊपरी भुजाएँ आधार के समानान्तर हैं।
( ७ ) यहाँ त्रिभुज को ऐसा चतुर्भुज माना गया है, जिसके आधार की सम्मुख भुजा इतनी छोटी होती है कि वह उपेक्षणीय होती है । इस दशा में त्रिभुज की बाजू को दो भुजाएँ, सम्मुख भुजाएँ बन जाती हैं, और ऊपरी भुजा मान में नहीं के बराबर ली जाती है। इसलिये नियम में त्रिभुजीय क्षेत्र के सम्बन्ध में भी सम्मुख भुजाओं का उल्लेख किया गया है; त्रिभुज दो भुजाओं के योग की अर्द्धराशि समस्त दशाओं में ऊँचाई से बड़ी होती है, इसलिये इस नियम के अनुसार प्राप्त क्षेत्रफल किसी भी उदाहरण में सूक्ष्म रूप से ठीक नहीं हो सकता ।
चतुर्भुज क्षेत्रों के सम्बन्ध में इस नियम के अनुसार प्राप्त क्षेत्रफल वर्ग और आयत के विषय में ठीक हो सकता है, परन्तु अन्य दशाओं में केवल स्थूलरूपेण शुद्ध होता है । जिनका एक ही केन्द्र होता है, ऐसे दो वृत्तों की परिधियों के बीच का क्षेत्र नेमिक्षेत्र कहलाता है । यहाँ दिये गये नियम के अनुसार नेमिक्षेत्र के व्यावहारिक क्षेत्रफल का माप शुद्ध माप होता है । बालेन्दु जैसी आकृति का इस नियमानुसार प्राप्त क्षेत्रफल केवल अनुमानित ही होता है ।