Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-६. १३०३]
मिश्रकव्यवहारः
[१२१
ल्या वाली
छ न रहा।
और
भक्ता द्वियुक्ता नवभिस्तु पञ्च युक्ताश्चतुर्भिश्च षडष्टभिस्तैः । पान्थैर्जनैः सप्तभिरेकयुक्ताश्चत्वार एते कथय प्रमाणम् ॥ १२९३ ।। _ अग्रशेषविभागमूलानयनसूत्रम्शेषांशाअवधो युक् स्वाग्रेणान्यस्तदंशकेन गुणः । यावद्भागास्तावद्विच्छेदाः स्युस्तदग्रगुणाः।।१३०३।।
समान फलों की संख्या वाली ५ ढेरियाँ थीं, जिनमें २ फल मिलाने के पश्चात् ९ यात्रियों में बाँटने पर कुछ न रहा । ६ ऐसी ढेरियों में ४ फल मिलाने के पश्चात् उसी प्रकार ८ में बाँटने पर, और ४ ढेरियों में १ फल मिलाकर उसी प्रकार ७ में बाँटने पर शेष कुछ न रहा। ढेरी का संख्यात्मक मान बतलाओ ॥ १२९३॥
इच्छानुसार वितरित मूल राशि को निकालने के लिये नियम, जब कि कुछ विशिष्ट ज्ञात राशियों को हटाने पर शेष को प्रास किया जाता है :
हटाई जाने वाली ( दी गई)ज्ञान राशि और ( दी गई ज्ञात राशि को दे चुकने पर) जो शेष विशिष्ट भिन्नीय भाग बच रहता है उसका भिन्नीय समानुपात-इन दोनों का गुणनफल प्राप्त करो । इसके बाद को राशि, इस गुणनफल में पिछले शेष में से निकाली जाने वाली विशिष्ट ज्ञात राशि को जोड़कर प्राप्त की जाती है । और, इस परिणामी योग को उसी प्रकार के ऊपर कथित शेष के शेष रहने वाले भिन्नीय समानुपात द्वारा गुणित किया जाता है। यह उतने बार करना पड़ता है जितने कि वितरण करने पड़ते हैं। तत्पश्चात् इस तरह प्राप्त राशियों के हरों को अलग कर देना चाहिये। हर रहित राशियों और शेष के ऊपर कथित शेष रहने वाले भिन्नीय समानुपात के उत्तरोत्तर गुणनफलों को ज्ञात राशि और (अन्य तत्व, जैसे, अज्ञात राशि का गुणांक) अपवर्त्य ( तथा भाजक के नाम से वल्लिका कुट्टोकार के प्रश्न में) उपयोग में लाते हैं ॥ १३०३ ॥
(१३०२) यहाँ हटाई जाने वालो ज्ञात राशि अग्र कहलाती है। अब के हटाने के पश्चात् जो बच रहता है वह शेष' कहलाता है। जो दिया अथवा लिया जाता है ऐसे शेष के भिन्न को अग्रांश कहते हैं, और अग्रांश के दिये अथवा लिये जानेपर जो शेष बच रहता है वह शेषांश अथवा शेष का शेष रहनेवाला भिन्नीय समानुपात कहलाता है, जैसे, जहाँ क का मान निकालना पड़ता है, और 'अ' विभाजित हुए भिन्नीय समानुपात ३ को लेकर प्रथम विभाजन सम्बन्धी अग्र है, वहाँ अग्रांश है और ( क - 4 )- शेषांश है । १३२२ - १३३६ वी गाथा के प्रश्न को हल करने पर यह नियम स्पष्ट हो जावेगा
यहाँ १ पहिला अग्र है, और । पहिला अग्रांश है; इसलिये ( १ - ) या 3 शेषांश है । अब, अग्र और शेषांश का गुणनफल १४ या 3 है । इसे दो स्थानों में लिखो, यथा
.................................... अब राशियों, {२/३ } की पुनरावृत्ति करो; किसी एक राशि में दूसरे अग्र १ को जोड़ दो । तब हमें {२/३१ प्राप्त होता है । दोनों को दूसरे शेषांश अर्थात् १ - 3 या 3 द्वारागुणित करो, ताकि {१९/९ } प्राप्त हो।......
.............(२) इन अंकों को लेकर पहिले की तरह तीसरे अग्र १ को जोड़ो जिससे ११९९ । प्राप्त होगा । ग० सा० सं०-१६
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