Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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[१४९
-६. २३०]
मिश्रकव्यवहारः द्वितीयतृतीययोजनानयनस्यसूत्रम्भरभाटकसंवर्गोऽद्वितीयभृतिकृतिविवर्जितश्छेदः । तभृत्यन्तरभरगतिहतेर्गतिः स्याद् द्वितीयस्य ॥२२८॥
अत्रोद्देशकः पनसानि चतुर्विंशतिमा नीत्वा पञ्चयोजनानि नरः । लभते तभृतिमिह नव षडभृतिवियुते द्वितीयनृगतिः का ॥२२९॥
बहुपद' भाटकानयनस्य सूत्रम्संनिहितनरहृतेषु प्रागुत्तरमिश्रितेषु मार्गेषु । व्यावृत्तनरगुणेषु प्रक्षेपकसाधितं मूल्यम् ॥२३०॥
१. B में यहाँ 'पद' छूट गया है ।
जब पहिला अथवा दूसरा बोझ ढोने वाला थक कर बैठ जाता है, तब दूसरे अथवा तीसरे बोझ ढोने वाले के द्वारा योजनों में तय की गई दूरियों को निकालने के लिये नियम
ले जाये जाने वाले कुल वजन और तय की गई मजदूरियों के मान के गुणनफल में से प्रथम ढोने वाले को दी गई मजदूरी के वर्ग को घटाओ। इस अन्तर को तय की गई मजदूरी और पहिले ही दे दी गई मजदूरी के अन्तर, ढोया जाने वाला पूरा वजन, और तय की जानेवाली पूरी दूरी के संतत गुणनफक के सम्बन्ध में भाजक के रूप में उपयोग में लाते हैं। परिणामी भजनफल दूसरे मजदूर द्वारा तय की जाने वाली दूरी होता है ॥२२८॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी मनुष्य को २४ पनस फल ५ योजन दूर ले जाने के लिये ९ फल मजदूरी के रूप में प्राप्त हो सकते हैं। यदि प्रथम मनुष्य को इनमें से ६ फल मजदूरी के रूप में दिये जा चुके हों, तो दूसरे ढोने वाले को अब कितनी दूरी तय करना है, ताकि वह शेष मजदूरी प्राप्त करले ? ॥२२९॥
विभिन्न दशाओं की संगत मजदूरियों के मानों को निकालने के लिये नियम, जब कि विभिन्न मजदूर उन विभिन्न दूरियों तक दिया गया बोझ ले जावें--
मनुष्यों की विभिन्न संख्याओं द्वारा तय की गई दूरियों को वहाँ ढोने का काम करने वाले मनुष्यों की संख्या द्वारा भाजित करो। प्राप्त भजनफलों को इस प्रकार संयुक्त करना पड़ता है, कि उनमें से पहिला अलग रख लिया जाता है, और तब बाद के भजनफलों (१, २, ३ आदि ) को उसमें जोड़ दिया जाता है। इन परिणामी राशियों को क्रमशः विभिन्न स्थानों पर बैठ जाने वाले मनुष्यों की संख्या द्वारा गुणित करना पड़ता है। तब इन परिणामी गुणनफलों के सम्बन्ध में प्रक्षेषक क्रिया (समानुपातिक विभाजन की क्रिया) करने से विभिन्न स्थानों पर छोड़ने ( बैठने ) वाले मनुष्यों की मजदूरियाँ प्राप्त होती हैं ॥२३०॥
(२२८) बीजीय रूप से : दा-द = (ब-क) अदा, जो पिछले नोट के समीकरण से सरलता
अब-कर
पूर्वक प्राप्त किया जा सकता है । यहाँ क अज्ञात राशि है।