Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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[ ६.२७१३
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गणितसारसंग्रहः जयति हि पक्षी ते मे देहि स्वर्णं ह्यविजयोऽसि दद्या ते । तद्वित्रयंशकमद्येत्यपरं च पुनः स संसृत्य ॥२७१३ ।। त्रिचतुर्थं प्रतिवाञ्छत्युभयस्माद् द्वादशैव लाभः स्यात् । तत्कुक्कुटिककरस्थं ब्रूहि त्वं गणकमुखतिलक ।। २७२३ ।।
राशिलब्धच्छेदमिश्रविभागसूत्रम्निश्रादूनितसंख्या छेदः सैकेन तेन शेषस्य । भागं हृत्वा लब्धं लाभोनितशेष एव राशिः स्यात् ।। २७३३ ।।
___ अत्रोद्देशकः केनापि किमपि भक्तं सच्छेदो राशिमिश्रितो लाभः । पश्चाशत्त्रिभिरधिका तच्छेदः किं भवेल्लब्धम् ।। २७४३ ।।
इष्ट संख्यायोज्यत्याज्यवर्गमूलराश्यानयनसूत्रम् - योज्यत्याज्ययुतिः सरूपविषमाग्रघ्नार्धिता वर्गिता व्यमा बन्धहृता च रूपसहिता त्याज्यैक्यशेषाप्रयोः ।
उन्हीं दशाओं में दाँव में लगाये गये धन का है धन देने की प्रतिज्ञा की । प्रत्येक दशा में उसे दोनों से केवल १२ (स्वर्ण के टुकड़े) लाभ के रूप में मिले। हे गणक मुख तिलक ! बतलाओ कि प्रत्येक पक्षी के स्वामी के पास दाँव में लगाने के लिये हाथ में कितना-कितना धन था ? ॥२७०-२७२६॥
अज्ञात भाज्य संख्या, भजनफल और भाजक को उनके मिश्रित योग में से अलग-अलग करने के लिये नियमः
कोई भी सुविधाजनक मनसे चुनी हुई संख्या जिसे दिये गये मिश्रित योग में से घटाना पड़ता है प्रश्न में भाजक होती है। इस भाजक को १ द्वारा बढ़ाने से प्राप्त राशि द्वारा, मन से चुनी हुई संख्या को दिये गये मिश्रित योग में से घटाने से प्राप्त शेष को, भाजित किया जाता है। इससे इष्ट भजनफल प्राप्त होता है । वहो ( उपर्युक्त ) शेष, इस भजनफल से हासित होकर, इष्ट भाज्य संख्या बन जाता है ॥२७३३॥
उदाहरणार्थ प्रश्न कोई अज्ञात राशि किसी अन्य अज्ञात राशि द्वारा भाजित होती है । यहाँ भाजक, भाज्य संख्या और भजनफल का योग ५३ है । वह भाजक क्या है, तथा भजनफल क्या है ? ॥२७४३॥
उस संख्या को निकालने के लिये नियम, जो मूल संख्या में कोई ज्ञात संख्या को जोड़ने पर, वर्गमूल बन जाती है; अथवा जो मूल संख्या में से दूसरी ज्ञात संख्या घटाई जाने पर, वर्गमूल बन जाती है
जोड़ी जाने वाली राशि और घटाई जानेवाली राशि के योग को उस योग की निकटतम युग्म संख्या से ऊपर के अतिरेक (excess above the even number) में एक जोड़ने से प्राप्त फला द्वारा गुणित करते हैं । परिणामी गुणनफल को आधा किया जाता है, और तब वर्गित किया जाता है। इस वर्गित राशि में से उपर्युक्त सम्भव आधिक्य ( योग की निकटतम युग्म संख्या से ऊपर का अतिरेक-excess) घटाते हैं। यह फल ४ द्वारा भाजित किया जाता है, और तब १ में जोड़ा जाता