Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-६. १३५३]
मिश्रकव्यवहारः
[१२३
विषमकुट्टीकारः इतः परं विषमकटोकार व्याख्यास्यामः । विषमकुट्रीकारस्य सूत्रममतिसंगुणितौ छेदौ योज्योनत्याज्यसंयुतौ राशिहृतौ । भिन्ने कुट्टीकारे गुणकारोऽयं समुद्दिष्टः ।। १३४३ ।।
अत्रोद्देशकः राशिः षट्केन हतो दशान्वितो नवहतो निरवशेषः । दशभिर्दानश्च तथा तद्गुणको' को ममाशु संकथय ।। १३५३ ।।
१. B गुणकारौ।
विषम कुट्टीकार*
इसके पश्चात् हम विषम कुट्टीकार को व्याख्या करेंगे । विषम कुट्टीकार सम्बन्धी नियम :
दिया हुआ भाजक दो स्थानों में लिख लिया जाता है, और प्रत्येक स्थान में मन से चुनी हुई संख्या द्वारा गुणित किया जाता है। (इस प्रश्न में ) जोड़ने के लिये दी गई (ज्ञात) राशि इन स्थानों के किसी एक गुणनफल में से घटाई जाती है। घटाई जाने के लिये दी गई राशि अन्य स्थान में लिखे हुए गुणनफल में जोड़ दी जाती है। इस प्रकार प्राप्त दोनों राशियाँ (प्रश्नानुसार विभाजित की जाने वाली अज्ञात राशियों के ) ज्ञात गुणांक (गुणक) द्वारा भाजित की जाती हैं। इस तरह प्राप्त प्रत्येक भजनफल इष्ट राशि होती है, जो भिन्न कुट्टीकार की रीति में दिये गये गुणक द्वारा गणित की जाती है । ॥ १३४ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
कोई राशि ६ द्वारा गुणित होकर, तब १० द्वारा बढ़ाई जाकर और तब ९ द्वारा भाजित होकर कुछ भी शेष नहीं छोड़ती। इसी प्रकार, ( कोई दूसरी राशि ६ द्वारा गुणित होकर ), तब १० द्वारा हासित होकर ( और तब ९ द्वारा भाजित होकर ) कुछ शेष नहीं छोड़ती। उन दो राशियों को शीघ्र बतलाओ ( जो दिये गये गुणक से यहाँ इस प्रकार गुणित की जाती हैं । ) ॥ १३५३ ॥
इस प्रकार, मिश्रक व्यवहार में, विषम कुट्टीकार नामक प्रकरण समाप्त हुआ।
* विषम और भिन्न दोनों शब्द कुट्टीकार के संबंध में उपयोग में लाये गये हैं और दोनों के स्पष्टतः एक से अर्थ हैं। ये इन नियमों के प्रश्नों में आने वाली भाज्य (dividend) राशियों के भिन्नीय रूप को निर्देशित करते हैं।