Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
View full book text
________________
१२४] गणितसारसंग्रहः
[६.१३६:सकलकुट्टीकारः सकलकुट्टीकारस्य सूत्रम्भाज्यच्छेदानशेषैः प्रथमहृतिफलं त्याज्यमन्योन्यभक्तं न्यस्यान्ते साग्रमूर्ध्वरुपरिगुणयुतं तैः समानासमाने । स्वर्णनं व्याप्तहारौ गुणधनमृणयोश्चाधिकाग्रस्य हारं हृत्वा हृत्वा तु सामान्तरधनमधिकाग्रान्वितं हारघातम् ॥ १३६३ ।।
सकल कुट्टीकार सकल कुट्टीकार सम्बन्धी नियम :
विभाजित की जाने वाली अज्ञात राशि के भाज्य गुणक द्वारा अग्रनयनित (carried on) तथा भाजक और उत्तरोत्तर परिणामी शेषों द्वारा अग्रनयनित भाजनों में प्रथम के भजनफल को अलग कर दिया जाता है। इस पारस्परिक भाजन द्वारा, जो कि भाजक और शेष के समान हो जाने तक किया जाता है, अन्य भजनफल प्राप्त किये जाते हैं, जो ऊर्ध्वाधर श्रृंखला में अन्तिम तुल्य शेष और भाजक के साथ लिखे जाते हैं । इस श्रृंखला के निम्नतम अंक में भाजक द्वारा विभाजित की गई ज्ञात राशि से प्राप्त शेष को जोड़ना पड़ता है। (तब, श्रृंखला में इन संख्याओं द्वारा,) वह योग प्राप्त करते है, जो उत्तरोत्तर निम्नतम संख्या में उसके ठीक ऊपर की दो संख्याओं का गुणनफल जोड़ने पर प्राप्त होता है । (यह विधि तब तक की जाती है जब तक कि श्रृंखला का उच्चतम अंक भी क्रिया में शामिल नहीं हो जाता।) उसके बाद यह परिणामी योग और प्रश्न में दिया गया भाजक, दो शेषों के रूप में, अज्ञात राशि के दो मानों को उत्पन्न करता है। इस राशि के मानों को प्रश्न में दिये गये भाज्य गुणक द्वारा गुणित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त होने वाले दो मान या तो जोड़ी जाने वाली दी गई ज्ञात राशि से सम्बन्धित रहते हैं अथवा घटाई जाने वाली दी गई ज्ञात राशि से सम्बन्धित रहते हैं, जब कि ऊपर कथित भजनफलों की श्रृंखला की अंक पंक्ति की संख्या क्रमशः युग्म अथवा अयुग्म होती है। (जहाँ दिये गये समूह एक से अधिक प्रकार से बढ़ाये जाने पर अथवा घटाये जाने पर एक से अधिक अनुपात में वितरित किये जाना होते हैं वहाँ ) अधिक बड़े समूहमान से सम्बन्धित भाजक (जिसे ऊपर समझाये अनुसार दो विशिष्ट विभाजनों में से किसी एक के सम्बन्ध में प्राप्त किया जाता है) को ऊपर के अनुसार बार-बार छोटे समूह मान से संबंधित भाजक द्वारा भाजित किया जाता है, ताकि उत्तरोत्तर भजनफलों की लता समान श्रृंखला इस दशा में भी प्राप्त हो सके । इस श्रृंखला के निम्नतम भजनफल के नीचे इस अंतिम उत्तरोत्तर भाग में अयुग्म स्थिति क्रमवाले अल्पतम शेष के मन से चुने हुए गुणक को रखा जाता है। फिर इसके नीचे वह संख्या रखी जाती है, जो दो समूह-मानों के अंतर को ऊपर कथित मन से चुने हुए गुणक से गुणित अयुग्य स्थिति क्रमवाले अल्पतम शेष के गुणनफल में जोड़नेपर, और तब इस परिणामी योग को ऊपर की भाजन श्रृंखला के अंतिम भाजक द्वारा भाजित करने पर प्राप्त होती है। इस प्रकार लता सदृश अंकों की श्रृंखला प्राप्त होती है, जिसकी आवश्यकता इस पिछले प्रकार के प्रश्न के साधन के लिये होती है। यह श्रृंखला नीचे से ऊपर तक पहिले की भाँति बर्ती जाती है, और परिणामी संख्या पहिले की तरह इस अंतिम भाजन श्रृंखला में प्रथम भाजक द्वारा भाजित की जाती है। इस क्रिया से प्राप्त शेष को अधिक बड़े समूह-मान से सम्बन्धित भाजक द्वारा गुणित किया जाना चाहिये । परिणामी गुणनफल में यह अधिक बड़ा समूहमान जोड़ देना चाहिये। ( इस प्रकार, दिये गये समूहमान के इष्ट गुणक का मान प्राप्त करते हैं ताकि वह विचाराधीन दो उल्लिखित विभाजनों का समाधान करे )। १३६ ॥
(१३६३ ) यह नियम १३७३ वी गाथा में दिये गये प्रश्न को हल करने पर स्पष्ट हो जावेगा