Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-६. ३४]
मिश्रकव्यवहारः
अत्रोद्देशकः सप्तत्या वृद्धिरियं चतुःपुराणाः फलं च पञ्चकृतिः । मिश्र नव पञ्चगुणाः पादेन युतास्तु किं मूलम् ॥ ३० ॥ त्रिकषष्ट्या दत्त्वैकः किं मूलं केन कालेन । प्राप्तोऽष्टादशवृद्धिं षट्षष्टिः कालमूलमिश्रं हि ॥ ३१ ॥ अध्यर्धमासिकफलं षष्ट्याः पञ्चार्धमेव संदृष्टम् । वृद्धिस्तु चतुर्विंशतिरथ षष्टिर्मूलयुक्तकालश्च ॥ ३२ ॥
प्रमाणफलेच्छाकालमिश्रविभागानयनसूत्रम्मूलं स्वकालवृद्धिद्विकृतिगुणं छिन्नमितरमूलेन । मिश्रकृतिशेषमूलं मिश्रे क्रियते तु संक्रमणम् ॥३३॥
अत्रोद्देशकः अध्यर्धमासकस्य च शतस्य फलकालयोश्च मिश्रधनम् । द्वादश दलसंमिश्रं मूलं त्रिंशत्फलं पञ्च ।। ३४ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न ४ पुराण, ७० पर प्रतिमाह ब्याज है। कुल पर प्राप्त ब्याज २५ है। मूलधन तथा ब्याज को भवधि का मिश्रयोग ४५३ है। कितना मूलधन उधार दिया गया है। ॥३०॥ ३ प्रति ६० प्रतिमास के अर्ध से कोई मनुष्य कितना मूलधन कितने समय के लिये ब्याज पर लगाये ताकि उसे ब्याज १८ प्राप्त हो जबकि उस अवधि तथा उस मूलधन का मिश्रयोग ६६ दिया गया है ॥३१॥ ६. पर ११ माह में ब्याज केवल २३ है। यहाँ ब्याज २४ है और मूलधन तथा अवधि का मिश्रयोग ६० है। समय तथा मूलधन क्या हैं ? ॥३२॥
ब्याजदर तथाइष्ट अवधि को मिश्रितयोग में से अलग-अलग करने के लिये नियम
मूलधनदर स्व समयदर द्वारा गुणित किया जाता है, तथा दिये गये ब्याज से और ४ से भी गुणित करने के उपरान्त अन्य दिये गये मूलधन द्वारा विभाजित किया जाता है। इस परिणामी भजनफल को दिये गये मिश्रयोग के वर्ग में से घटाकर प्राप्त शेष के वर्गमूल को मिश्रयोग के सम्बन्ध में संक्रमण क्रिया करने के उपयोग में लाते हैं ॥३३॥
___ उदाहरणार्थ प्रश्न अर्ध अधिक प्रतिशत प्रतिमाह की इष्ट दर से ब्याज दर और अवधि का मिश्रयोग १२३ होता है । मूलधन ३० है और उस पर ब्याज ५ है । बतलाओ ब्याज दर और भवधि क्या-क्या है ? ॥३॥
(३३) प्रतीक रूप से, /२ धा ४ आ.xबX४ को 'म' के साथ इष्ट संक्रमण क्रिया करने
के उपयोग में लाते हैं। यहाँ म-बा+अ है।
ग० सा० सं०-१३