Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-६. २४ ]
मिश्रकव्यवहार:
मूलवृद्धिमिश्रविभागानयनसूत्रम्रूपेण कालवृद्धथा युतेन मिश्रस्य भागहारविधिम् । कृत्वा लब्धं मूल्यं वृद्धिद्लोनमिश्रधनम् ।।२१।।
अत्रोद्देशकः पञ्चकशतप्रयोगे द्वादशमासैर्धनं प्रयुङ्क्ते चेत् । साष्टा चत्वारिंशन्मिश्रं तन्मूलवृद्धी के ॥ २२ ।।
पुनरपि मलवृद्भिमिश्रविभागसत्रमइच्छाकालफलनं स्वकालमूलेन भाजितं सैकम् । संमिश्रस्य विभक्तं लब्धं मूलं विजानीयात् ।।२३।।
अत्रोद्देशकः सार्धद्विशतकयोगे मासचतुष्केण किमपि धनमेकः । दत्त्वा मिश्रं लभते किं मूल्यं स्यात् त्रयस्त्रिंशत् ।। २४ ॥
कालवृद्धिमिश्रविभागानयनसूत्रम्मूलं स्वकालगुणितं स्वफलेच्छाभ्यां हृतं ततः कृत्वा ।
मिश्रित रकम में से धन और ब्याज अलग करने के लिये नियम
मूलधन और ब्याज सम्बन्धी दिये गये मिश्रधन को जो दी गई अवधि के ब्याज में जोड़कर . प्राप्त किया जाता है, ऐसी (ब्याज) राशि द्वारा हासित किया जाय तो इष्ट मूलधन प्राप्त होता है। और इष्ट न्याज को मिश्रित धन में से (निकाले हुए) इष्ट मूलधन को घटाकर प्राप्त कर लेते हैं ॥२१॥
उदाहरणार्थ प्रश्न यदि कोई धन ५ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्घ से व्याज पर दिया जाय तो १२ माह में मिश्रधन ४८ हो जाता है । बतलाओ कि मूलधन और ब्याज क्या हैं ? ॥२२॥
मिश्रधन में से मूलधन और व्याज अलग करने के लिये दूसरा नियम
दिये गये समय तथा ब्याज दर के गुणनफल को समयदर तथा मूलधनदर द्वारा भाजित करते हैं। प्राप्त फल में १ जोड़ने से प्राप्त राशि द्वारा मिश्रधन को भाजित करते हैं जिससे परिणामी भजनफल इष्ट मूलधन होता है ॥२३॥
उदाहरणार्थ प्रश्न २३ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्घ से रकम को ब्याजपर देने से किसी को चार माह में ३३ मिश्रधन प्राप्त होता है । बतलाओ मूलधन क्या है ? ॥२४॥
मिश्र योग में से अवधि तथा ब्याज को अलग करने के लिये नियममूलधनदर को अवधि दर द्वारा गुणित करो और ब्याज दर तथा दिये गये मूलधन द्वारा
( २१ ) प्रतीक रूप सेध --- म जहाँ म =+ब है; इसलिये ब-म-ध
१+
१XअXबा आधा
अXबा (२३) प्रतीक रूप से,
ष्ट है कि यह बहुत कुछ गाथा २१ में
आरघा दिये गये सूत्र के समान है।