Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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गणितसारसंग्रहः
अत्रोद्देशकः
सप्तार्धशतक योगे वृद्धिस्त्वष्टाग्रविंशतिरशीत्या |
कालेन केन लब्धा कालं विगणय्य कथय सखे ।। १५ ।।
विंशतिषट्शतकस्य प्रयोगतः सप्तगुणषष्टिः । वृद्धिरपि चतुरशीतिः कथय सखे कालमाशु त्वम् ॥ १६ ॥ षटकशतेन हि युक्ताः षण्णवतिर्वृद्धिरत्र संदृष्टा । सप्तोत्तरपञ्चाशत् त्रिपञ्चभागश्च कः कालः ||१७|| भाण्डप्रतिभाण्डसूत्रम् -
भाण्डस्वमूल्यभक्तं प्रतिभाण्डं भाण्डमूल्यसंगुणितम् । स्वेच्छाभाण्डाभ्यस्तं भाण्डप्रतिभाण्डमूल्यफलमेतत् ॥ १८ ॥ अत्रोदेशकः
क्रीतान्यष्टौ शुण्ठ्याः पलानि पभिः पणैः सपादांशैः । पिप्पल्याः पलपञ्चकमथ पादोनैः पणैर्नवभिः ॥ १९ ॥ शुण्ठ्याः पलैश्च केनचिदशीतिभिः कति पलानि पिप्पल्याः । क्रीतानि विचिन्त्य त्वं गणितविदाचक्ष्व मे शीघ्रम् ॥ २० ॥
इति मिश्रकव्यवहारे पञ्चराशिविधिः समाप्तः । वृद्धिविधानम्
इतः परं मिश्रकव्यवहारे वृद्धिविधानं व्याख्यास्यामः ।
१ M और B दोनों में अशुद्ध पाठ है : कश्चित् त्वशीतिभिः स च पलानि पिप्पल्या ः .
[ ६.१५
उदाहरणार्थ प्रश्न
हे मित्र ! अवधि की गणना कर बतलाओ कि ३३ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्घं से ८० पर २८ ब्याज कितने समय में प्राप्त होगा ? ॥ १५ ॥ २० प्रति ६०० प्रतिमाह के अर्ध से उधार दिया गया धन ४२० । ब्याज भी ८४ है । हे मित्र ! मुझे शीघ्र बतलाओ कि यह ब्याज कितनी अवधि में उपार्जित हुआ है ? ॥१६॥ ६ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्ध से ९६ उधार दिये जाते हैं । उन पर ५७३ ब्याज होता है । यह ब्याज कितनी अवधि में प्राप्त हुआ होगा ? ॥ १७ ॥
I
प्रतिभांड ( वस्तुओं के पारस्परिक विनिमय ) के सम्बन्ध में नियम
बदले में ली गई वस्तु के परिमाण को उसके स्वमूल्य तथा बदले में दी गई वस्तु के परिमाण द्वारा विभाजित करते हैं । तब उसे बदले में दी गई वस्तु के मूल्य द्वारा गुणित करते हैं और तब, बदली जाने वाली ( जिसे बदलना इष्ट है ) वस्तु के परिमाण द्वारा गुणित करते हैं । यह परिणामी गुणनफल, बदले में ली गई वस्तु तथा बदले में दी गई वस्तु के मूल्यों की संवादी इष्ट राशि होती है ॥ १८ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
८ पल शुण्ठि ( सूखी अदरख ) ६४ पण में खरीदी गई और ५ पल लम्बी मिर्च ८ पण में खरीदी गई । हे गणितज्ञ ! विचारकर मुझे शीघ्र बतलाओ कि ऊपर लिखी हुई दर से खरीदी जाने वाली लम्बी मिर्च, ८० पल सूखी अदरख ( सोंठ ) के बदले में कितने पल खरीदी जा सकेगी ? ॥ १९-२० ॥ इस प्रकार, मिश्रक व्यवहार में पंचराशिक विधि नामक प्रकरण समाप्त हुआ ।
इसके पश्चात्
वृद्धि विधान [ ब्याज ] मिश्रक व्यवहार में हम व्याज पर व्याख्या करेंगे ।