Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-६. १०१३] मिश्रकव्यवहारः
[१११ इष्टरूपाधिकहीनप्रक्षेपककरणसूत्रम्पिण्डोऽधिकरूपोनो हीनोत्तररूपसंयुतः शेषात् । प्रक्षेपककरणमतः कर्तव्यं तैर्युता हीनाः ॥ ९७३॥
अत्रोद्देशकः प्रथमस्यैकांशोऽतो द्विगुणद्विगुणोत्तराद्भजन्ति नराः। चत्वारोंऽशः कः स्यादेकस्य हि सप्तषष्टिरिह ॥ ९८३ ॥ प्रथमादध्यर्धगुणात् त्रिगुणाद्रपोत्तराद्विभाज्यन्ते । साष्टा सप्ततिरेभिश्श्चतुर्भिराप्तांशकान् ब्रूहि ॥ ९९३ ॥ प्रथमादध्यर्धगुणाः पश्चार्धगुणोत्तराणि रूपाणि । पञ्चानां पश्चाशत्सैका चरणत्रयाभ्यधिका॥१००३॥ प्रथमात्पञ्चाधेगुणाश्चतुगुणोत्तरविहीनभागेन । भक्तं नरैश्चतुर्भिः पञ्चदशोनं शतचतुष्कम् ॥ १०१३ ॥
समानुपाती भाग सम्बन्धी नियम, जहाँ मन से चुनी हुई कुछ पूर्णांक राशियों को जोड़ना अथवा घटाना होता है
दी गई कुल राशि को जोडी जाने वाली पूणांक राशियों द्वारा हासित किया जाता है, अथवा घटाई जानेवाली पूर्णाक धनात्मक राशियों में मिलाया जाता है। तब इस परिणामी राशि की सहायता से समानुपाती भाग की क्रिया को जाती है, और परिणामी समानुपाती भागों को क्रमशः उनमें जोड़ी जानेवाली पूर्णाक राशियों से मिला दिया जाता है। अथवा, वे उन घटाई जानेवाली पूर्णांक राशियों द्वारा क्रमशः ह्वासित की जाती हैं ॥ ९७१ ॥
___ उदाहरणार्थ प्रश्न चार मनुष्यों ने उत्तरोत्तर द्विगुणित समानुपाती भागों में और उत्तरोत्तर द्विगुणित अन्तरों वाले योग में अपने हिस्सों को प्राप्त किया। प्रथम मनुष्य को एक हिस्सा मिला । ६७ बाँटी जाने वाली राशि है। प्रत्येक के हिस्से क्या हैं ? ॥ ९८ ॥ ७८ की रकम इन चार मनुष्यों में ऐसे समानुपाती भागों में वितरित की जाती है जो उत्तरोत्तर प्रथम से आरम्भ होकर प्रत्येक पूर्ववर्ती से १३ गुणे हैं और (योग में ) जिनका अन्तर एक से आरम्भ होकर तिगुना वृद्धि रूप है। प्रत्येक के द्वारा प्राप्त भागों के मान बतलाओ । ॥ ९९३ ॥ पाँच मनुष्यों के हिस्से क्रमिकरूपेण प्रथम से आरम्भ होकर प्रत्येक पूर्ववर्ती से १३ गुने हैं, और योग में अन्तर की राशियाँ वे हैं जो उत्तरोत्तर (पूर्ववर्ती अन्तर ) से २३ गुणी हैं। ५३ विभाजित की जाने वाली कुल राशि है। प्रत्येक के द्वारा प्राप्त भागों के मान बतलाओ ॥१००३ ॥ ४०० ऋण १५ को चार मनुष्यों के बीच ऐसे भागों में विभाजित किया जाता है जो पहिले से आरम्भ होकर प्रत्येक पूर्ववर्ती से २१ गुणे हैं, और जो उन अंतरों द्वारा हासित हैं जो उत्तरोत्तर पूर्ववर्ती अंतर से ४ गुने हैं । विभिन्न भागों के मानों के प्राप्त करो ॥१०१३॥
(९७३) समानुपाती भाग की क्रिया यहाँ ८७३ से ८९३ में दिये गये नियमों में से किसी भी एक के अनुसार की जा सकती है।
(९८१ ) हिस्सों में जोड़ी जानेवाली अंतर राशि यहाँ १ है जो दूसरे मनुष्य के संबंध में है। यह दो शेष मनुष्यों में से प्रत्येक के लिये पूर्ववर्ती अंतर की दुगुनी है। यह अंतर दूसरे मनुष्य के लिये स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं है जैसा कि इस उदाहरण में १ उल्लिखित है। १००१ वी गाथा और १०११वी गाथा के उदाहरण में भी स्पष्ट उल्लेख नहीं है।