Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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-४. ५२]
प्रकीर्णकव्यवहारः तरुणहरिणीयुग्मं दृष्टं द्विसंगुणितं वने कुधरनिकटे शेषाः पञ्चांशकादिलान्तिमाः। विपुलकलमक्षेत्रे तासां पदं त्रिभिराहतं कमलसरसीतीरे तस्थुर्दशैव गणः क्रियान् ॥ ५० ॥
_____ इति द्विरप्रशेषमूलजातिः।। अथांशमूलजातौ सूत्रम्भागगुणे मूलाग्रे न्यस्य पदप्राप्तदृश्यकरणेन । यल्लब्धं भागहृतं धनं भवेदंशमूलविधौ ।। ५१ ॥
अन्यदपि सूत्रम्दृश्यादंशकभक्ताञ्च गुप्पान्मूलकृतियुतान्मूलम् । संपदं दलितं वर्गितमंशाभ्यस्तं भवेत् सारम्॥५२॥ के भाग से लेकर भाग तक के भिन्नीय भाग पर्वत के पास देखे गये। उस झुण्ड के संख्यात्मक मान के वर्गमूल की तिगुनी राशि विस्तृत कलम (चांवल ) क्षेत्र में देखी गई। अंत में, कमल सरोवर के किनारे शेष केवल १० देखे गये । झुण्ड का प्रमाण क्या है ? ॥५०॥
इस प्रकार 'द्विरम शेषमूल' जाति प्रकरण समाप्त हुआ। "अंशमूल" जाति सम्बन्धी नियम
अज्ञात समूह वाचक राशि के दिये गये भित्रीय भाग के वर्गमूल के गुणांक को तथा अंत में शेष रहनेवाली ज्ञात राशिको लिखो। इन दोनों राशियों को दिये गये समानुपाती मिन द्वारा गुणित करो। जो 'शेषमूल' प्रकार में अज्ञात राशिको निकालने की क्रिया द्वारा प्राप्त होता है, उस फल को जब दिये गये समानुपाती भिन्न द्वारा भाजित करते हैं तब अंशमूल प्रकार की इष्ट राशि प्राप्त होती है। ॥५१॥
'अंशमूल' प्रकार का अन्य नियम
अंतिम शेष के रूप में दी गई ज्ञात राशि दिये गये समानुपाती भिन्न द्वारा भाजित की जाती है और ४ द्वारा गुणित की जाती है । प्राप्त फल में अज्ञात समूह वाचक राशि के दत्त भिन्न के वर्गमूल के गुणांक का वर्ग जोड़ा जाता है। इस योगफल के वर्गमूल को ऊपर कथित अज्ञात राशि के भिन्नीय भाग के वर्गमल के गणांक में जोड़ते हैं और तब आधा कर वर्गित करते हैं। प्राप्त फल को दत्त समानुपाती भिन्न द्वारा गुणित करने पर इष्ट फल प्राप्त होता है। ॥५२॥ .
(५०) इस गाथा में आया हुआ शब्द 'हरिणीं” का अर्थ न केवल मादा हरिण होता है वरन् उस छन्द का भी नाम होता है जिसमें यह गाथा संरचित हुई है। .. (५१) बीजीय रूप से कथन करने पर, यह नियम ‘स ब' और 'अ ब के मान निकालने में सहायक होता है, जिनका प्रतिस्थापन, शेषमूल प्रकार में किये गये अनुसार. सूत्र क - बक = } +
(स) +अ } में क्रमशः स और अ के स्थान पर करना पड़ता है । ४७ वीं गाथा के टिप्पण के समान, क- बक यहाँ भी क हो जाता है । इष्ट प्रतिस्थापन के पश्चात् और फल को ब द्वारा विभाजित करने पर हमें क= {+ (सब) +अब +ब प्राप्त होता है । - क का यह मान समीकरण क - स./बक - अ = ० से भी सरलता से प्राप्त हो सकता है।
४अ
(५२) बीजीय रूप से कथन करने पर, क=1
x ब होता है। यह
पिछली गाथा के टिप्पण में दिये गये समीकार से भी स्पष्ट है।