Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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प्रकोणकव्यवहारः
अत्रोद्देशकः अष्टमं षोडशांशघ्नं शालिराशेः कृषीवलः । चतुर्विंशतिवाहांश्च लेभे राशिः क्रियान् वद ॥ ५८ ॥ शिखिनां षोडशभागः स्वगुणश्ते तमालपण्डेऽस्थात् । शेषनवांशः स्वहतश्चतुरप्रदशापि कति ते स्युः ॥ ५९॥ जले त्रिंशदंशाहतो द्वादशांशः स्थितः शेषविंशो हतः षोडशेन । त्रिनिघ्नेन पके करा विंशतिः खे सखे स्तम्भदैय॑स्य मानं वद त्वम् ॥ ६० ।।
इति भागसंवर्गजातिः। अथोनाधिकाशवर्गजातौ सूत्रम्स्वांशकभक्तहराध न्यूनयुगधिकोनितं च तद्वर्गात्। न्यूनाधिकवर्गाग्रान्मूलं स्वर्ण फलं पदेंऽशहृतम् ॥ ६१ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न कोई कृषक शालि के ढेरी की भाग प्रमाण राशि द्वारा गुणित उसी ढेरो की भाग प्रमाण राशि को प्राप्त करता है । इसके सिवाय उसके पास २४ वाह और रहती है । बतलाओ ढेरी का परिमाण क्या है ? ॥५४॥ झुंड के परवें भाग द्वारा गुणित मयूरों के झुंड का वा भाग, आम के वृक्ष पर पाया गया। स्व [ अर्थात् शेष के वें भाग] द्वारा गुणित शेष का वां भाग, तथा शेष १४ मयूरों को तमाल वृक्ष के झुंड में देखा गया। बतलाओ वे कुल कितने हैं ? ॥५९|| किसी स्तम्भ के १३३ भाग को स्तम्भ के भाग द्वारा गुणित करने से प्राप्त भाग पानी के नीचे पाया गया। शेष के २० वें भाग को उसी शेष के 4वें भाग द्वारा गणित करने से प्राप्त भाग कीचड़ में गड़ा हुआ पाया गया। शेष २० हस्त पानी के ऊपर हवा में पाया गया। हे मित्र ! स्तम्भ की लम्बाई बताओ। ॥६०॥ इस प्रकार, "भाग संवर्ग" जाति प्रकरण समाप्त हुआ।
ऊनाधिक 'अंशवर्ग' जाति सम्बन्धी नियम
(अज्ञात राशि के विशिष्ट भिनीय भाग के) हर की अर्द्ध राशि के स्व अंश द्वारा विभाजित करने से प्राप्त राशियों को ( समूह वाचक अज्ञात राशि के विशिष्ट भिन्नीय भाग में से घटाई जाने वाली) दी गई ज्ञात राशि द्वारा मिश्रित अथवा हासित करो। इस परिणामी राशि के वर्ग को (घटाई जाने वाली अथवा जोड़ी जाने वाली) ज्ञात राशि के वर्ग द्वारा तथा राशि के ज्ञात शेष द्वारा हासित करो। जो फल मिले उसका वर्गमूल निकालो। इस वर्गमूल द्वारा उपर्युक्त प्रथम वर्ग राशि का वर्गमूल मिश्रित अथवा हासित किया जाता है। जब प्राप्त राशि को अज्ञात राशि के विशिष्ट भिन्नीय भाग द्वारा विभाजित करते हैं तब अज्ञात राशि की इष्ट अर्हा ( value ) प्राप्त होती है ॥३१॥ इस अर्हा को समीकार क - म क पक-अ द्वारा भी प्राप्त कर सकते हैं, जहाँ म/न और प/फ नियम में अवेक्षित भिन्न हैं। ....(६१) बीजीय रूप से, क = { +(* द)'-द'-अ+ (म + द)} *म: क की यह अर्हा समीकार, क-(मक+द) - अ = ०, द्वारा भी प्राप्त हो सकती है, जहां द दी गई शात राशि है, जो अज्ञात राशि के इस उल्लिखित भिन्नीय भाग में से घटाई जाती है अथवा उसमें जोड़ी जाती है।
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