Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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गणितसारसंग्रहः
[५.२१
व्यस्तसप्तराशिक उद्देशकः व्यासायामोदयतो बहुमाणिक्ये चतुर्नवाष्टकरे । द्विषडेकहस्तमितयः प्रतिमाः कति कथय तीर्थकृताम् ॥ २१ ॥
___ व्यस्तनवराशिक उद्देशकः विस्तारदैर्योदयतः करस्य षट्त्रिंशदष्टप्रमिता नवार्घा। .. शिला तया तु द्विषडेकमानास्ताः पञ्चकार्घाः कति चैत्ययोग्याः ॥ २२ ॥
इति व्यस्तपञ्चसप्तनवराशिकाः । गतिनिवृत्तौ सूत्रम्निजनिजकालोद्धतयोर्गमननिवृत्त्योर्विशेषणाजाताम् । दिनशुद्धगतिं न्यस्य त्रैराशिकविधिमतः कुर्यात् ॥ २३ ॥
अत्रोद्देशकः क्रोशस्य पञ्चभागं नौर्याति दिनत्रिसप्तभागेन । वाधौ वाताविद्धा प्रत्येति क्रोशनवमांशम् ॥२४॥ कालेन केन गच्छेत् त्रिपञ्चभागोनयोजनशतं सा।। संख्याब्धिसमुत्तरणे बाहुबलिंस्त्वं समाचक्ष्व ॥ २५ ॥
१ B और K में तस्मिन्काले वाधों, पाठ है।
व्यस्त सप्तराशिक पर उदाहरणार्थ प्रश्न बतलाओ कि ४ हस्त चौड़े, ९ हस्त लम्बे, ८ हस्त ऊंचे बड़े मणि में से २ हस्त चौड़ी ६ हस्त लम्बी तथा १ हस्त ऊँची तीर्थंकरों की कितनी प्रतिमाएं बन सकेंगी? ॥२१॥
__व्यस्त नव राशिक पर उदाहरणार्थ प्रश्न । जिसकी कीमत ९ है ऐसी ६ हस्त चौड़ी ३० हस्त लम्बी तथा ८ हस्त उंची एक शिला दी गई है। बतलाओ कि जिन मंदिर बनवाने के लिये इस शिला में से, जिसकी कीमत ५ है ऐसी २ हस्त चौड़ी ६ हस्त लम्बी तथा १ हस्त ऊँची कितनी शिलायें प्राप्त हो सकेंगी? ॥२२॥
इस प्रकार व्यस्त पंचराशिक, सप्तराशिक और नवराशिक प्रकरण समाप्त हुआ। गति निवृत्ति सम्बन्धी नियम
दिन की शुद्ध गति को लिखो जो अग्र तथा पश्च ( आगे तथा पीछे की ओर होने वाली) गतियों के दिये गये अघों ( rates ) के अन्तर से प्राप्त होती है. जबकि इन अर्षों में से प्रत्येक को प्रथम उनके विशिष्ट समयों द्वारा विभाजित कर लिया जाता है। और तब, इस शुद्ध दैनिक गति के सम्बन्ध में त्रैराशिक नियम की क्रिया करो।
उदाहरणार्थ प्रश्न दिन में, एक जहाज समुद्र में ६ क्रोश जाती है; उसी समय वह पवन के विरोध से है क्रोश पीछे हट जाती है। हे संख्या समुद्र को पार करने के अर्थ बाहुबल धारी ! बतलाओ कि वह जहाज ९९३ योजन कितने समय में जावेगी? ॥२४-२५॥ एक मनुष्य जो ३६ दिनों में ११ स्वर्ण