Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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९.] गणितसारसंग्रहः
[५.४२सप्तराशिक उद्देशकः त्रिचतुर्व्यासायामौ श्रीखण्डावहतोऽष्टहेमानि । षण्णवविस्तृतिर्ध्या हस्तेन चतुर्दशात्र कति ।। ४२ ॥
इति सप्तराशिकः।
नवराशिक उद्देशकः पश्चाष्टत्रिव्यासदैर्योदयाम्भो धत्ते वापी शालिनी वाहषट्कम् । सप्तव्यासा हस्ततः षष्टिदैर्ध्याः पात्सेधोः किं नवाचक्ष्व विद्वन ॥ ४३ ।।
इति सारसंग्रहे गणितशास्त्रे महावीराचार्यस्य कृतौ त्रैराशिको नाम चतुर्थव्यवहारः ॥
१ ४३ वें श्लोक के सिवाय K और B में निम्नलिखित श्लोक प्राप्य है
द्वयष्टाशीतिव्यासदैोन्नताम्भो धत्ते वापी शालिनी सार्धवाहौ। हस्तादष्टायामकाः षोडशोच्छ्राः षटकव्यासाः किं चतस्रा वद त्वम् ।।
सप्तराशिक पर उदाहरणार्थ प्रश्न जिनमें प्रत्येक का व्यास ३ हस्त और लम्बाई ( आयाम ) ४ हस्त है, ऐसे संदल-लकड़ी के दो टुकड़ों का मूल्य ८ स्वर्ण मुद्राएं हैं। इस अर्घ से, जिनमें प्रत्येक ६ हस्त व्यास में और ९ हस्त लम्बाई में है ऐसे संदल-लकड़ी के १४ टुकड़ों का क्या मूल्य होगा ? ॥४२॥
नवराशिक पर उदाहरणार्थ प्रश्न जो चौड़ाई, लम्बाई और (तली से ) उंचाई में क्रमशः ५, ८ और ३ हस्त है ऐसी किसी घर की वापिका में ६ वाह पानी भरा है। हे विद्वान् ! बतलाओ कि ७ हस्त चौड़ी, ६० हस्त लम्बी और तली से ५ हस्त ऊँचो ९ वापिकाओं में कितना पानो समावेगा? ॥४३॥
इस प्रकार सप्तराशिक और नवराशिक प्रकरण समाप्त हुआ।
इस प्रकार महावीराचार्य की कृति सारसंग्रह नामक गणित शास्त्र में त्रैराशिक नामक चतुर्थ व्यवहार समाप्त हुआ।
(४३) इस गाथा में 'शालिनी' शब्द का अर्थ "घर की होता है। यह उस छंद का भी नाम है जिसमें यह गाथा संरचित हुई है।