Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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३२] गणितसारसंग्रहः
[२. १०२अत्रोद्देशकः त्रिमुख गच्छबाणाङ्काम्बरजलनिधिधने कियान्प्रचयः । पगुणचयपञ्चपदाम्बरशशि हिमगुत्रिवित्तमत्र मुखं किम् ।।१०२।।
गुणसंकलितगच्छानयनसूत्रमएकोनगुणाभ्यस्तं प्रभवहृतं रूपसंयुतं वित्तम् । यावत्कृत्वो भक्तं गुणेन तद्वारसंमितिर्गच्छः ।।१०३।।
अत्रोद्देशकः त्रिप्रभवं षट्कगुणं सारं सप्तत्युपेतसप्तशती । सप्तामा ब्रूहि सखे कियत्पदं गणक गुणनिपुण ॥१०४॥ पश्चादिद्विगुणोत्तरे शरगिरिद्वथेकप्रमाणे धने सप्तादि' त्रिगुणे नगेभदुरितस्तम्बरमतुप्रमे । त्र्यास्ये पश्चगुणाधिके हुतवहोपेन्द्राक्षवह्निद्विपश्वेतांशुद्विरदेभकर्मकरदृङ्मानेऽपि गच्छः कियान् ।१०५। " इति परिकर्मविधौ सप्तमं संकलितं समाप्तम् ।।
व्युत्कलितम् अष्टमे व्युत्कलितपरिकर्मणि करणसूत्रं यथा-. सपदेष्टं स्वेष्टमपि व्येकं दलितं चयाहतं समुखम् । शेषेष्टगच्छगुणितं व्युत्कलितं स्वेष्टवित्तं च ।।१०६॥
१ M द्य।
साधारण निष्पत्ति तर श्रेदि में प्रथम पद उदाहरणार्थ प्रश्न
यदि गुणोत्तर श्रेढि में प्रथम पद ३ है, पदों की संख्या ६ है, और योग ४०९५ है तो उसकी साधारण निष्पत्ति बतलाओ । यदि साधारण निष्पत्ति ६ हो, पदों की संख्या ५ हो, और योग ३११० हो तो ऐसी गुणोत्तर श्रेढि का प्रथमपद क्या है ? ॥१२॥
गुणोत्तर श्रेढि के पदों की संख्या निकालने का नियम
गुणोत्तर श्रेढि के योग को एक कम साधारण निष्पत्ति द्वारा गुणित करो; तब इस गुणनफल को प्रथमपद द्वारा भाजित करो और तब इस भजनफल में एक जोड़ो। यह परिणामी राशि साधारण निष्पत्ति द्वारा जितनी बार उत्तरोत्तर भाजित होगी, वह संख्या श्रेढि के पदों की संख्या होगी ।।१०३।।
उदाहरणार्थ प्रश्न हे गुणनिपुण गणक मित्र ! मुझे बतलाओ कि जिस श्रेढि में प्रथमपद ३ है; साधारण निष्पत्ति ६ है, और योग ७७७ है, उसके पदों की संख्या कितनी होगी? ॥१०॥ जिस श्रेढि में ५प्रथमपद हैं, २ साधारण निष्पत्ति है, १२७५ योग है; और उस श्रेढि में जिसका प्रथमपद ७ है; योग ६८८८७ है और साधारण निष्पत्ति३ है तथा उस श्रेढि में जिसका प्रथमपद ३ है, साधारण निष्पत्ति ५ है और योग २२८८८१८३५९३ है-पदों की संख्या अलग-अलग निकालो ॥१०५॥ इस प्रकार परिकर्म व्यवहार में, संकलित नामक परिच्छेद समाप्त हुआ।
व्युत्कलित परिकर्म क्रियाओं में आठवीं क्रिया व्युत्कलित' सम्बन्धी नियम
श्रेढि के कुल पदों की संख्या को चुने हुए पदों की संख्या से मिला लो, और अपनी चुनी हुई पदों की संख्या अलग से लो; इन राशियों में से प्रत्येक को एक द्वारा हासित कर आधी करो और तब प्रचय द्वारा गुणित करो; और तब इन प्रत्येक परिणामी गुणनफलों में प्रथमपद को जोड़ दो। प्राप्त परिणामी राशियों को जब क्रमशः शेष पदों की संख्या तथा चुने हुए पदों की संख्या द्वारा गुणित करते हैं तो क्रमशः शेष श्रेढि का योग और श्रेढि के चुने हुए भाग का योग प्राप्त होता है ॥१०६॥
१किसी दी हुई श्रेदि में आरम्भ से चुना हुआ कोई भाग इष्ट भाग कहलाता है और शेष श्रेदि में शेष पद रहने के कारण वह शेष श्रेदि कहलाती है । इन शेष पदों का योग ही व्युत्कलित कहलाता है।
(१०६) बीजीय रूप से व्युत्कलित = य = ५ न+द-१३+अ } (न - द ), और
चुने हुए भाग ( इष्ट ) का योग = य, (१८ ब+अ) द; जहाँ द श्रेटि का चुने हुए भाग के पदों की संख्या है।