Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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* ४८ ]
गणित सारसंग्रहः
कला सवर्णषड्जातिः
इतः परं कलासवर्णे षड्जातिमुदाहरिष्यामःभागप्रभागावथ भागभागो भागानुबन्धः परिकीर्तितोऽतः । भागापवाहः सह भागमात्रा षड्जातयो ऽमुत्र कला सवर्णे || ५४ ||
भागजातिः
तत्र भागजात करणसूत्रं यथासहशहृतच्छेदहतौ मिथोंऽशहारौ समच्छिदावंशौ । करौ योज्य त्याज्यौ वा भागजातिविधौ ॥५५॥
कलासवर्ण षड्जाति ( छः प्रकार के भिन्न )
अब हम छः प्रकार के भिन्नों का प्रतिपादन करेंगे -
भाग ( साधारण भिन्न ), प्रभाग ( भिन्नों के भिन्न), भागभाग ( जटिल या संकर भिन्न complex fractions ), भागानुबंध ( संयव भिन्न fractions in association ), भागापवाह (वियवन भिन्न fractions in dissociation ) और भाग मात्र ( भिन्न जिनमें ऊपर कथित भिन्नों में से दो या अधिक भिन्न सम्मिलित हों ); ये भिन्नों के छः भेद कहलाते हैं ||५४ ||
भागजाति [ साधारण भिन्नों का जोड़ और घटाना ]
अग बक + कखग कखग
साधारण भिन्नों का क्रिया (करण) सम्बन्धी नियम
दिये गये दो साधारण भिन्नों सम्बन्धी क्रियाओं में प्रत्येक के अंश और हर को, उभय साधारण गुणनखंड द्वारा हरों को विभाजित करने से प्राप्त भजनफलों द्वारा एकान्तर से गुणित करते हैं । वे भिन्न इस तरह प्रहासित होकर समान हर वाले हो जाते हैं । तब इनमें से कोई एक हर अलग कर, अंशों को जोड़ते अथवा घटाते हैं [ ताकि दूसरे समान हर के सम्बन्ध में परिणामी राशि अंश हो ] || ५५ ||
(५५) भिन्नों को साधारण हरों में प्रहासित करने का नियम केवल भिन्न युग्म के लिये प्रयोज्य है । निम्नलिखित उदाहरण से यह नियम स्पष्ट हो जावेगा -
अ ब कख ख ग
+ को हल करने के लिये यहाँ, "अ" और "कख" को "ग" से गुणित करते हैं जोकि
दूसरे भिन्न के हर "खग” को हरों के साधारण गुणनखण्ड ख द्वारा विभाजित करने पर भजनफल "ग" के रूप में प्राप्त होता है । इसी प्रकार दूसरे भिन्न में "ब" और "खग" को "क" से गुणित करते हैं जो प्रथम भिन्न के हर " कख" को हरों के साधारण गुणनखण्ड "ख" द्वारा विभाजित करने पर "क" के रूप में प्राप्त होता है । इस तरह हमें क्रमश: और प्राप्त होते हैं । इस तरह
[ ३.५४
अग + बक कखग
अग
कखग
बक कखग