Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
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कलासवर्णव्यवहारः
अत्रोद्देशकः त्रयाणां रूपकांशानां राशीनां के हरा वद । फलं चतुर्थभागः स्याच्चतुर्णां च त्रिसप्तमम् ।।८१।।
ऐकांशानामनेकांशानां चानेकांशे फले छेदोत्पत्तौ सूत्रम्इष्टहता दृष्टांशाः फलांशसदृशो यथा हि तद्योगः। निजगुणहृतफलहारस्तद्धारो भवति निर्दिष्टः।।८२॥
अत्रोद्देशकः एककांशेन राशीनां त्रयाणां के हरा वद । द्वादशाप्ता त्रयोविंशत्यशंका च युतिर्भवेत् ।।८३॥ त्रिसप्तकनवांशानां त्रयाणां के हरा वद । द्वयनपश्चाशदाप्ता त्रिसप्तत्यंशा युतिभवेत् ।।८४॥
एकांशकयो राश्योरेकांशे फले छेदोत्पत्तौ सूत्रम्१ ८३ और ८४ श्लोक B में छूट गये हैं।
उदाहरणार्थ प्रश्न तीन विभिन्न भिन्नीय राशियों का योग है है, तथा उनमें से प्रत्येक का अंश १ है। ऐसो चार अन्य राशियों का योग है। बतलाओ कि हर क्या हैं ? ॥८१॥
जिनका अंश एक अथवा कोई और संख्या हो ऐसे कुछ इच्छित भिन्नों के हर निकालने के लिये नियम जब कि उन भिन्नों के योग का अंश १ की अपेक्षा अन्य संख्या हो
ज्ञात अंश कुछ चुनी हुई राशियों द्वारा गुणित किये जाते हैं, ताकि इन गुणनफलों का योग इष्ट भिन्नों के दिये गये योग के अंश के बराबर हो जावे । यदि इष्ट भिन्नों के दिये गये योग के हर को उसी गुणक से विभाजित किया जाय ( जिससे कि दिया गया अंश गुणित किया गया है) तो वह अंश सम्बन्धी चाहे हुए हर को उत्पन्न करता है॥४२॥
उदाहरणार्थ प्रश्न तीन भिन्नीय राशियों में, प्रत्येक का अंश है। उनके हरों का मान निकालो जब कि उन राशियों का योग२३ हो ॥४३॥ क्रमशः ३, ७ और ९ अंशवाली तीन भिन्नीय राशियों के हरों का मान बतलाओ जब कि उन राशियों का योग हो ॥४४॥
अंशवाली दो भिन्नीय राशियों के हरों का मान निकालने के लिये नियम जब कि उन भिन्नीय राशियों के योग का अंश हो
दिये गये योग के हर को चुनी हुई संख्या द्वारा गुणित करने पर किसी एक इष्ट भिन्नीय राशि का हर प्राप्त होता है। यह हर, एक कम (पिछली) चुनी हुई संख्या द्वारा विभाजित किया जाने पर
में शेष भिन्नों का योग
कथित है, जहां 'प' चुनी हुई राशि है । यह
स्पष्ट रूप
न+प.
अ
-ना
अ
से
को हल करने से प्राप्त होती है। यहां प को इस तरह चुनना चाहिये कि (न+प)
न
न+प
अ
में अ का पूरा पूरा भाग जा सके।