Book Title: Ganitsara Sangrah
Author(s): Mahaviracharya, A N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
Publisher: Jain Sanskriti Samrakshak Sangh
View full book text
________________
५.] गणितसारसंग्रह
[३. ९४अत्रोद्देशका त्रिकपञ्चकत्रयोदशसप्तनवैकादशांशराशीनाम् । के हाराः फलमेकं पञ्चांशो वा चतुर्गुणितः ॥१४॥
__एकसूत्रोत्पन्नरूपांशहारैः सूत्रान्तरोत्पन्नरूपांशहारैश्च फले रूपे छेदोत्पत्तौ नष्टभागानयनेच सूत्रम्वान्छितसूत्रजहारा हरा भवन्त्यन्यसूत्रजहरघ्नाः । दृष्टांशैक्योनं फलमभीष्टनष्टांशमानं स्यात् ॥१५॥
अत्रोद्देशक परहतिदलनविधानात्त्रयोदश स्वपरसंगुणविधानात् । भागाश्चत्वारोऽतः कति भागाः स्युः फले रूपे ॥९॥ प्राकखपरहतविधानात्सप्तस्वासन्नपरगुणाधविधानात् । भागास्थितयश्चातः कति भागाः स्युः फले रूपे ॥९७॥ रूपांशका द्विषट्कद्वादशविंशतिहरा विनष्टोऽत्र । पश्चमराशी रूपं सर्वसमासः स राशिः कः ॥९॥
इति भागजातिः। लेते हैं। उनमें से चाहे हुए हरों को, दो घटक भित्रीय राशियों के सम्बन्ध में बतलाये गये नियम द्वारा निकालते हैं ।।१३।।
उदाहरणार्थ प्रश्न ___ उन इष्ट मिलों के हर क्या होंगे जिनके अंश क्रमशः ३, ५, १३, ., ९ और ११ हैं, जबकि उन भिन्नीय राशियों का योग : अथवा है ? ॥९॥
जिनका संवादी अंश १ है और जो उपर्युक्त नियमों द्वारा प्राप्त किये गये हैं ऐसे हरों की सहायता से कुछ हरों को निकालने के लिये (नियम); तथा जिनका संवादी शहै और जिनके इष्ट भिन्नों का योग एक है तथा जो उपर्युक्त अन्य नियमों द्वारा प्राप्त किये गये हैं ऐसे भिन्नों की सहायता से हरों को निकालने के लिये (नियम) और नष्ट भाग का मान निकालने के लिये नियम
किसी भी चुने हए नियम के अनुसार प्राप्त हरों को दूसरे नियम से प्राप्त हरों द्वारा गुणित करने पर चाहे हुए हर प्राप्त होते हैं। इन भिन्नों का योग, विशिष्ट भाग के योग द्वारा हासित किये जाने पर छोड़े हुए नष्ट भाग का मान होता है ॥१५॥
उदाहरणार्थ प्रश्न नियम ७७ द्वारा प्राप्त भिन्नों की संख्या १३ है और नियम क्रम ७८ द्वारा प्राप्त भिन्नों की संख्या ४ है। इन नियमों की सहायता से प्राप्त भिन्नों का योग है, तो बतलाओ कि विघटक भिन्न कितने हैं ॥९॥ गाथा ७८ के नियम द्वारा प्राप्त भिन्नों की संख्या ७ है और नियम ७७ गाथानुसार प्राप्त संख्या ३ है। यदि इन नियमों द्वारा प्राप्त भिन्नों का योग हो तो बतलाओ विघटक भिन्न कितने हैं ॥९७॥ जिनके अंश १.१ हैं ऐसे कुछ भिन्नों के हर क्रमशः २, ६, १२ और २० हैं। यहां पांचवीं भिन्नीय राशि छोड़ दी गई है। इन पाँचों भिन्नों का योग १ है, बतलाओ कि वह छोड़ी गई भिन्नीय राशि क्या है ? ॥९॥
इस प्रकार, कलासवर्ण षड्जाति में भाग जाति नामक परिच्छेद समाप्त हुआ। (९३) दो भिन्नीय राशियों के सम्बन्ध में गाथा ८५, ८७ और ८९ में नियम दे दिये गये है।