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प्रथम ढाल
हैं। कहनेका सारांश यह है कि इस प्रकार असंख्य दुःखोंको यह जीव तिर्यंचगतिमें भोगता है, जिन्हें यदि करोड़ों ब्यक्ति भी एक साथ कहनेको बैठे तो सहस्रों वर्षों तक नहीं कह सकते हैं। इस प्रकार जब यह जीव संक्लेशपूर्वक मरता है तो नरकगतिमें जाकर उत्पन्न होता है।
इस प्रकार तिर्यंचगतिके दुःखोंका वर्णन समाप्त हुआ ।
अब ग्रन्थकार आगे नरकगतिके दुःखोंका वर्णन करते हैं:तहां भूमि परसत दुख इसो, बीछू सहस डसे नहिं तिसो। तहां राध शोणित वाहिनी,कृमि-कुल-कलित, देह-दाहिनी॥१० सेमर तरु जुत दल असिपत्र, असि ज्यों देह विदारे तत्र । मेरुसमान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय॥११॥ तिल-तिल करें देहके खंड, असुर भिड़ावै दुष्ट प्रचंड । सिन्धु नीरतें प्यास न जाय, तो पण एक न बूंद लहाय॥१२ तीन लोकको नाज जो खाय, मिटैन भूख कणा न लहाय । ये दुख बहु सागर लों सहै, करम जोगते नरगति लहै॥१३॥ ___ अर्थ-उन नरकोंकी भूमिको छूनेसे ऐसा दुःख होता है कि वैसा दुख हजारों बिच्छुओंके एक साथ काटनेसे भी नहीं हो सकता। वहांपर पीव और खूनसे भरी हुई, कीड़ोंके समूहसे युक्त और शरीरको जलानेवाली नदी बहती है। वहांके वृक्ष सेमरके वृक्षके समान लम्बे और तलवारकी धारके समान तेज