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छहढाला शिशेषार्थ-मध्यम अन्तरात्माके स्वरूपमें देशव्रती अनगारी' या देशव्रती आगारी' इस प्रकारके दो पाठ मुद्रित या अमुद्रित प्रतियोंमें दृष्टिगोचर होते हैं। छहढालाकार पं० दौलतरामजी को कौनसा पाठ अभीष्ट था, उन्होंने अपने हाथसे लिखी प्रतिमें कौनसा पाठ लिखा था, यह जाननेको हमारे पास कोई साधन नहीं है, तथापि इस विषयमें आगम-परम्पराको देखने पर हमें दोनों पाठोंके साधक प्रमाण उपलब्ध होते हैं। अमित-गति श्रावकाचार, वसुनन्दिश्रावकाचार, सागारधर्मामृत, धर्मसंग्रह श्रावकाचार, और लाटी-संहिता* आदि ग्रन्थों में एक स्वर से साधुको उत्तमपात्र, श्रावकको मध्यम और अविरत सम्यग्दृष्टिको जघन्य पात्र या अन्तरात्मा माना है । तदनुसार देश-व्रतीआगारी' यह उचित ठहरता है। किन्तु स्वामि-कार्तिकेयानुप्रेक्षामें प्रमत्तविरत साधुको भी मध्यम अन्तरात्मा माना है। यथा--- - सावयगुणे,हिं जुत्ता पमत्त वरदा य मज्झिमा होति । जिणवयणे अणु ता उवममसीला महासत्ता ॥१६६॥
अर्थात् जो जिनवचनमें अनुरक्त, मन्दकषायी और महापराक्रमी हैं, श्रावकके गुणोंसे संयुक्त हैं, ऐसे श्रावक और प्रमत्तविरत साधु ये मध्यम अन्तरात्मा हैं।
*देखो अमितगति श्रावकाचार परि० १० श्लोक ४ । सागारधमामृत अ० ५ श्लोक ४४ । धर्मसंग्रहश्रावकाचार अ० ७ श्लोक १११ । लाटीसंहिता स० ६ श्लोक २२२ । वसुनन्दिश्रावकाचार गाथा २२३-२२४ ।