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छहढाला
हैं सम्यग्दर्शनकी बहुत बड़ी महिमा है, इसके ही प्रभावसे नौ निधि और चौदह रत्नोंका स्वामी चक्रवर्ती पद प्राप्त होता है, तथा त्रैलोक्यका स्वामित्वरूप महान तीर्थकर पद भी इसी निर्मल सम्यग्दर्शनके प्रभावसे मिलता है । ऐसा जान कर भव्यजीवों को सम्यग्दर्शनकी प्राप्तका सदा प्रयत्न करते रहना चाहिए ।
अब आगे बतलाते हैं कि सम्यग्दर्शनके बिना ज्ञान और चारित्र यथार्थताको प्राप्त नहीं होते, इसलिये इसे सबसे प्रधान समझकर अविलम्ब धारण करना चाहिये :
माक्ष महलकी परथम सीढ़ी या बिन ज्ञान चरित्रा, सम्यकता न लहैं सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा । 'दौल' समझ, सुन, चेत, सयाने काल वृथा मांत खोवै, यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक नहि होवे ॥७॥
अर्थ — यह सम्यग्दर्शन मोक्षरूपी महलमें जाने के लिए पहली सीढ़ी है । इसके बिना ज्ञान और चारित्र सम्यकूपना नहीं घाते, अर्थात् जब तक जीवके सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हो जाता
है, तब तक उसका ज्ञान मिथ्या ज्ञान और चारित्र मिथ्या चारित्र ही कहलाते हैं, वे तब तक सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र नहीं कहला सकते जब तक कि सम्यग्दर्शन प्राप्त न हो जाय । क्योंकि शास्त्रकारों ने इसे मोक्ष मार्गमें कर्णधारके समान