Book Title: Chhahadhala
Author(s): Daulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
Publisher: B D Jain Sangh

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Page 201
________________ १६६ छहढाला निज मांहि लोक अलोक गुण पर्याय प्रतिविम्बित थये, रहि हैं अनन्तानन्त काल यथा तथा शिव परनये । धनि धन्य हैं जे जीव नरभव पाय यह कारज किया, तिन ही अनादि भ्रमण पंच प्रकार तजि वर सुख लिया।१३। सिद्ध अवस्थामें अपनी आत्माके भीतर ही लोकाकाश, अलोकाकाश, समस्त द्रव्योंके अनन्त गुण और पर्याय एक साथ प्रतिविम्बित होने लगते हैं । मुक्त जीव जिस प्रकार सिद्ध अवस्था को प्राप्त हुए हैं, उसी प्रकार आगे अनन्तानन्त काल तक मोक्षमें रहेंगे, उनमें कभी रंचमात्र परिवर्तन नहीं होगा। जिन जीवोंने नर-भव पाकर मोक्ष प्राप्त करनेका महान् कार्य किया, वे धन्य हैं, धन्य हैं । और, उन्होंने ही अनादि कालसे संसारमें परिभ्रमण कराने वाले पंच परावर्तनों को त्याग करके मोक्षका उत्तम सुख प्राप्त किया है। ___ विशेषार्थ-जिस आकार-प्रकार और रूपमें सिद्ध-अवस्था प्राप्त होती है, उसी आकार-प्रकार और रूपमें वे अनन्तानन्तकाल तक ज्योंके त्यों सचराचर विश्वको जानते देखते हुए विराजमान रहते हैं । सिद्ध जीव कभी भी संसारमें लौटकर नहीं आते ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आनन्द सर्व लोकातिशायी, मयोंदातीत और अनुपम होता है। वे सदाके लिए जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, भय आदि सांसारिक झंझटोंसे मुक्त हो जाते हैं ।

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